Tuesday, November 18

श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर: 3 दुकानों पर 24 साल पुराना विवाद खत्म, हाई कोर्ट ने कहा—ट्रस्ट संपत्ति पर लागू नहीं होता यूपी किराया कानून

मथुरा/प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर की तीन दुकानों पर कब्जे को लेकर चल रहे 24 साल पुराने विवाद पर बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने साफ कहा कि ये दुकानें सार्वजनिक धार्मिक और चैरिटेबल ट्रस्ट की संपत्ति हैं, ऐसे में इनपर यूपी किराया नियंत्रण कानून लागू नहीं होगा। कोर्ट ने किरायेदारों की याचिकाएं खारिज करते हुए आदेश दिया कि संबंधित दुकानदारों को दुकानें खाली करनी होंगी।

ट्रस्ट की संपत्ति, नहीं मिलेगी किरायेदार सुरक्षा

न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने निर्णय देते हुए कहा कि धार्मिक ट्रस्ट की संपत्ति पर किरायेदार सुरक्षा कानून का लाभ नहीं लिया जा सकता। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि शेष दो मामलों का निपटारा दो माह के भीतर किया जाए।

कैसे शुरू हुआ विवाद?

श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर का जीर्णोद्धार 1944 में महामना मदन मोहन मालवीय की पहल पर शुरू हुआ।
इसके बाद—

  • 1951: ‘श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट’ की स्थापना
  • 1958: प्रबंधन के लिए ‘श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान’ का गठन

संस्थान ने परिसर में दुकानें बनवाकर उन्हें 11 महीने के लाइसेंस पर किरायेदारों को दिया। इनमें—

  • दुकान संख्या 8-A – अशोक राघव
  • दुकान संख्या 8 – पद्मा राघव
  • दुकान संख्या 16-17 – स्व. हरिश राघव (अब वारिस)

लाइसेंस अवधि खत्म होने के बाद दुकानदारों ने दुकानें खाली नहीं कीं। इस पर संस्थान ने 2000-2002 के बीच बेदखली के मुकदमे दायर किए।

किरायेदारों के तर्क और हाई कोर्ट की प्रतिक्रिया

किरायेदारों का दावा था कि—

  1. संस्थान कोई धार्मिक/चैरिटेबल ट्रस्ट नहीं, इसलिए उनपर किराया कानून लागू होना चाहिए।
  2. संस्थान के सचिव कपिल शर्मा को मुकदमा दायर करने का अधिकार नहीं था।

लेकिन कोर्ट ने तर्क खारिज कर दिए

हाई कोर्ट ने ट्रस्ट डीड और सोसाइटी के दस्तावेजों का अध्ययन किया और कहा—

  • संस्थान पूरी तरह धार्मिक और जनकल्याणकारी कार्यों से जुड़ा है।
  • इसलिए यह सार्वजनिक धार्मिक ट्रस्ट की श्रेणी में आता है।
  • इस श्रेणी की संपत्तियों को किराया कानून से छूट प्राप्त है।
  • संस्थान के बायलॉज सचिव को मुकदमा दायर करने का पूरा अधिकार देते हैं।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब संस्थान की ओर से किसी सदस्य ने सचिव के अधिकार पर आपत्ति नहीं उठाई, तो किरायेदार भी इस आधार पर मुकदमे को चुनौती नहीं दे सकते।

अब क्या होगा?

किरायेदारों को अब दुकानें खाली करनी होंगी या संस्थान उन्हें विधिक प्रक्रिया के तहत बेदखल कर सकता है। लंबे समय से चल रहा विवाद हाई कोर्ट के फैसले के बाद निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया है।

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