Wednesday, November 5

साइबर फ्रॉड को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाई कोर्ट ने ऑनलाइन धोखाधड़ी के आरोपियों की जमानत खारिज की

नई दिल्ली: देशभर में बढ़ते साइबर अपराधों और वित्तीय धोखाधड़ी के मामलों को देखते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। अदालत ने कहा कि ऐसे अपराध अब सीमाओं में नहीं बंधे हैं और दूर-दराज बैठे अपराधी भी देशभर के लोगों को निशाना बना रहे हैं। इसलिए न्यायपालिका को नरमी नहीं दिखानी चाहिए।

जस्टिस अजय दिग्पॉल की अदालत ने 3 नवंबर को दिए आदेश में दो आरोपियों – परमजीत खर्ब और राम कुमार रमन – की जमानत याचिकाएं खारिज करते हुए कहा,

“अदालत साइबर अपराधों और वित्तीय धोखाधड़ी में हो रही खतरनाक बढ़ोतरी को अनदेखा नहीं कर सकती। जमानत के स्तर पर नरमी बरतना ऐसे अपराधों को और बढ़ावा दे सकता है।”

वॉट्सऐप-टेलीग्राम ग्रुप से किया गया था करोड़ों का फ्रॉड

दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने इन दोनों आरोपियों के खिलाफ 2024 में जालसाजी, धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश के आरोपों में केस दर्ज किया था।
एफआईआर के मुताबिक, आरोपियों ने ‘CHCSES’ नाम से वॉट्सऐप और टेलीग्राम पर फर्जी इन्वेस्टमेंट ग्रुप बनाकर निवेशकों को भारी मुनाफे का लालच दिया।

पीड़ितों ने बताया कि उन्हें फर्जी एप्लिकेशन और वेबसाइटों के जरिए ऑनलाइन ट्रेडिंग में निवेश करने के लिए प्रेरित किया गया। लाखों रुपए ट्रांसफर होने के बाद आरोपियों ने संपर्क तोड़ दिया, उनके नंबर ब्लॉक कर दिए और सभी डिजिटल ट्रेस मिटा दिए।

सीमा-पार अपराध और तकनीकी चुनौती

अदालत ने कहा कि साइबर अपराधों की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि

“ये अपराध भौगोलिक सीमाओं से बंधे नहीं होते। इन्हें किसी भी हिस्से से अंजाम दिया जा सकता है, और पीड़ित अलग-अलग राज्यों में फैले रहते हैं।”

कोर्ट ने माना कि इस मामले में अपराध संगठित और योजनाबद्ध तरीके से किया गया था, और इसकी जांच अभी जारी है।

कोर्ट का सख्त संदेश – ‘सावधानी ही सुरक्षा’

जस्टिस दिग्पॉल ने टिप्पणी की कि इस तरह के मामलों में अदालतों को अधिक न्यायिक सतर्कता बरतनी चाहिए।

“यदि इस स्तर पर अदालतें ढिलाई दिखाती हैं, तो ऐसे तकनीकी और सीमा-पार अपराधों में रोकथाम की क्षमता कमजोर हो जाएगी।”

अदालत ने कहा कि पहली नजर में दोनों आरोपियों की सक्रिय भूमिका स्पष्ट दिखती है, इसलिए उन्हें फिलहाल जमानत नहीं दी जा सकती।
(संपादकीय टिप्पणी)
डिजिटल युग में जहां ऑनलाइन लेन-देन और निवेश तेजी से बढ़ रहे हैं, वहीं साइबर अपराधियों का जाल भी उतना ही खतरनाक होता जा रहा है। दिल्ली हाई कोर्ट का यह निर्णय एक कड़ा संदेश है कि तकनीकी ठगी और ऑनलाइन धोखाधड़ी जैसे अपराधों पर अब अदालतें किसी तरह की नरमी नहीं बरतेंगी।

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