
मुजफ्फरपुर/पटना।
बिहार की सियासत में मछुआरा समुदाय — यानी निषाद और मल्लाह मतदाता — 2025 के विधानसभा चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाने जा रहे हैं। इनकी पकड़ गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, कमला, कोसी और गंगा जैसी नदियों के किनारे बसे उत्तर बिहार और मिथिलांचल की 22 सीटों पर है। यही वजह है कि इस बार इन मतदाताओं को लुभाने के लिए सभी दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।
एनडीए और महागठबंधन में निषाद वोटरों को साधने की जंग
निषाद समुदाय, जिन्हें केवट, कश्यप और मल्लाह भी कहा जाता है, परंपरागत रूप से नीतीश कुमार की अति पिछड़ा वर्ग (EBC) नीतियों के कारण एनडीए के समर्थक रहे हैं। लेकिन इस बार हालात बदल रहे हैं — महागठबंधन में वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी की एंट्री ने समीकरणों में बड़ा बदलाव ला दिया है।
एनडीए अब अपने निषाद नेताओं को मोर्चे पर उतारकर इन वोटरों को अपने खेमे में बनाए रखने की कोशिश कर रहा है, जबकि महागठबंधन ने राहुल गांधी की ‘मछली पकड़ो’ रणनीति से भावनात्मक जुड़ाव का दांव खेला है।
राहुल गांधी की ‘तालाब डिप्लोमेसी’
बेगूसराय में राहुल गांधी ने मुकेश सहनी के साथ तालाब में उतरकर खुद मछली पकड़कर यह संदेश देने की कोशिश की कि कांग्रेस निषाद समुदाय के साथ खड़ी है। यह कदम पूरे बिहार में चर्चा का विषय बना हुआ है।
NDA का पलटवार — निषाद चेहरों की तैनाती
एनडीए ने जवाबी रणनीति में अपने निषाद चेहरों को पूरे दमखम से मैदान में उतारा है।
केंद्रीय मंत्री राज भूषण चौधरी, राज्य मंत्री मदन साहनी, विधान पार्षद भीष्म साहनी और हरी साहनी गांव-गांव घूमकर अपने समुदाय को जोड़ने में जुटे हैं।
मुजफ्फरपुर में भाजपा ने इस बार अजय निषाद की पत्नी रमा निषाद को औराई सीट से टिकट देकर बड़ा दांव खेला है।
स्थानीय मतदाताओं का मानना है कि अजय निषाद के परिवार का समुदाय पर गहरा प्रभाव है — उनके पिता, कैप्टन जय नारायण निषाद, केंद्र में मंत्री रह चुके हैं और एक समय निषाद राजनीति के सबसे मजबूत चेहरा माने जाते थे।
किन सीटों पर निर्णायक हैं निषाद वोट
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, निषाद-मल्लाह मतदाता कम से कम 22 सीटों पर जीत-हार का फैसला कर सकते हैं। इनमें प्रमुख सीटें हैं:
- मुजफ्फरपुर जिला: मीनापुर, औराई, बचहा, कुरहानी, साहेबगंज, मुजफ्फरपुर शहर
- दरभंगा: बहादुरपुर, गौरा बौराम, दरभंगा शहर
- समस्तीपुर: हसनपुर, रोसड़ा, मोरवा, सरायरंजन, उजियारपुर
- खगड़िया: बेलदौर
- मधेपुरा: आलमनगर
- वैशाली: लालगंज
- पूर्वी चंपारण: सुगौली, केसरिया
- पश्चिमी चंपारण: पिपरा
- भागलपुर: कहलगांव
इनमें से 17 सीटों पर मतदान 6 नवंबर को पहले चरण में होगा, जबकि शेष 4 सीटों (पूर्वी और पश्चिमी चंपारण व भागलपुर क्षेत्र) पर 11 नवंबर को वोटिंग होगी।
सियासी नतीजों की चाबी अब निषादों के हाथ
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि 2020 में एनडीए ने इन 22 में से 14 सीटें जीती थीं। इस बार अगर निषाद वोटरों का झुकाव महागठबंधन की ओर बढ़ता है, तो यह समीकरण पूरी तरह बदल सकता है।
मुजफ्फरपुर के मंटू मल्लाह कहते हैं — “मुकेश सहनी जरूर ताकत बने हैं, पर निषाद वोटों को ट्रांसफर कराने की उनकी असली परीक्षा अब होगी।”
वहीं हाजीपुर के राजू साहनी का कहना है — “भाजपा ने निषाद परिवार को फिर से मंच पर लाकर हमें सम्मान दिया है, अब देखना यह है कि जनता किसे चुनती है।”
📊 निष्कर्ष:
2025 का बिहार विधानसभा चुनाव नदियों के किनारों पर बसे निषाद और मल्लाह मतदाताओं के रुख पर टिका है। उनकी एकजुटता न केवल उम्मीदवारों की तकदीर बदलेगी, बल्कि यह भी तय करेगी कि राज्य की सियासत की पतवार किसके हाथ में जाएगी।