Saturday, November 15

बिहार ने मोदी-नीतीश की जोड़ी को क्यों किया ‘राइट स्वाइप’? 11 बड़ी वजहें जो बनीं महागठबंधन की हार

नई दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने कई राजनीतिक समीकरणों को बदलकर रख दिया। एनडीए ने न केवल जबरदस्त जीत दर्ज की, बल्कि महागठबंधन को भी करारी शिकस्त दी। इस जीत के पीछे कई अहम वजहें थीं, जिन्होंने बिहार की जनता को मोदी और नीतीश की जोड़ी के समर्थन में खड़ा कर दिया। आइए जानते हैं उन 11 कारणों को, जिनकी वजह से बिहार में एनडीए को मिली ऐतिहासिक जीत।

1. नी-मो इफेक्ट (नीतीश-मोदी का प्रभाव)

बिहार के चुनावी नतीजों में नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी के संयोजन को ‘नी-मो इफेक्ट’ के रूप में देखा गया। नीतीश कुमार की स्थानीय लोकप्रियता और नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय अपील का मेल बिहार के मतदाताओं को बहुत आकर्षक लगा। बिहार के विकास, कानून-व्यवस्था और बिजली की आपूर्ति जैसे मुद्दों पर नीतीश के नेतृत्व में काम हुए थे, जबकि मोदी ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी तेज फैसले लेने की छवि को मजबूत किया। यह जोड़ी विकास और स्थिरता का प्रतीक बन गई।

2. एनडीए का गठबंधन चलाने का हुनर

एनडीए ने इस बार दिखा दिया कि गठबंधन को सही तरीके से कैसे चलाया जाता है। चिराग पासवान को भी गठबंधन में शामिल किया गया और उन्हें सीटें दीं, जिससे सामाजिक और जातिगत समीकरण को संभाला गया। बीजेपी और जेडीयू के बीच सीटों का बंटवारा साफ-साफ हुआ और प्रचार में अनुशासन बना रहा। इस रणनीति ने गठबंधन को स्थानीय स्तर पर भी मजबूती दी।

3. ‘जंगल राज’ की यादें

महागठबंधन में मुख्य चेहरा तेजस्वी यादव के रूप में था, जो लालू यादव के उत्तराधिकारी माने जाते हैं। बिहार के लोगों को आज भी ‘लालू-राबड़ी राज’ की कुव्यवस्था और अराजकता की यादें ताजा हैं। जब तेजस्वी को सीएम उम्मीदवार बनाया गया, तो एनडीए ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया और ‘मंगल राज’ का वादा किया। यह मुद्दा महागठबंधन को भारी पड़ा।

4. महिलाओं ने जताया एनडीए पर भरोसा

महिलाओं के लिए शुरू की गई योजनाएं, जैसे जीविका स्वयं सहायता समूहों को सहायता, वृद्धावस्था पेंशन में बढ़ोतरी और मुफ्त राशन, ने एनडीए को महिलाओं का समर्थन दिलाया। महिलाएं यह नहीं चाहती थीं कि उनके लिए बनाए गए सुरक्षा उपाय और योजनाओं पर कोई आंच आए, और इसलिए उन्होंने नीतीश और मोदी के नेतृत्व को चुना।

5. महागठबंधन की गलतियों पर हमला

एनडीए ने महागठबंधन की कमजोरियों को बखूबी उजागर किया। आरजेडी के नेताओं द्वारा की गई बयानबाजी, खासकर यादवों के आक्रामक व्यवहार, ने समाज के अन्य वर्गों को नाराज किया। इसके अलावा, ओसामा शहाबुद्दीन के बेटे द्वारा सार्वजनिक समर्थन की वजह से भी महागठबंधन की छवि खराब हुई।

6. एनडीए की एक्टिव प्रतिक्रियाएं

एनडीए ने कई मौकों पर सक्रिय रणनीतियों के साथ बिहार के लोगों का विश्वास जीता। विशेष रूप से छठ पूजा के दौरान बीजेपी ने घर लौटने वाले बिहारियों के लिए विशेष ट्रेनें चलाने की योजना बनाई, जो बिहारियों के दिलों में बस गई। यह कदम बिहार की संस्कृति को राष्ट्रीय पहचान दिलाने के प्रयास के रूप में देखा गया।

7. आरजेडी ‘MY’ समीकरण में फंसा रहा

आरजेडी का मुख्य वोट बैंक ‘MY’ (मुस्लिम-यादव) था, लेकिन पार्टी इस समीकरण को आगे बढ़ाने में नाकाम रही। यादवों की ओर से की गई बयानबाजी और आरजेडी के नेताओं की पुरानी राजनीति ने महागठबंधन को नुकसान पहुंचाया। इससे उनकी पार्टी उन सीटों पर हार गई जहां उन्हें ज्यादा वोटों की जरूरत थी।

8. राहुल गांधी का ‘वोट चोरी’ दांव फेल

राहुल गांधी का ‘वोट चोरी’ का मुद्दा लोगों के बीच प्रभावी नहीं हो पाया। उनका चुनाव प्रचार सही दिशा में नहीं चल सका, और इसके बजाय उन्होंने समय बर्बाद किया। तेजस्वी यादव ने भी इस रणनीति को अपनाया, लेकिन यह महागठबंधन को फायदा नहीं दिला सका।

9. तेजस्वी यादव पूरी तरह खरे नहीं उतरे

तेजस्वी यादव ने ‘जंगल राज’ से अपनी पार्टी को बाहर निकालने का प्रयास किया, लेकिन उनके प्रयासों को लालू यादव की विरासत से मुकाबला करना पड़ा। साथ ही, भ्रष्टाचार के आरोपों ने भी उनकी छवि को नुकसान पहुंचाया।

10. फॉरवर्ड बनाम बैकवर्ड की राजनीति अब अप्रभावी

बिहार में जातिगत राजनीति में ‘फॉरवर्ड बनाम बैकवर्ड’ का मुद्दा अब उतना प्रभावी नहीं रह गया है। अब जातिगत समीकरणों के बजाय विकास के मुद्दों पर ज्यादा ध्यान दिया गया। मोदी और नीतीश दोनों ओबीसी से हैं, जिसने एनडीए को मजबूती दी।

11. महागठबंधन में नहीं दिखी केमिस्ट्री

महागठबंधन में शुरुआत से ही तालमेल की कमी दिखी। कांग्रेस और आरजेडी के बीच संवाद की कमी और गठबंधन के भीतर असहमति ने चुनाव प्रचार को कमजोर किया। अंत में छोटे नेताओं को मैदान में उतारने से कोई खास फायदा नहीं हुआ, और कांग्रेस की कमजोर पकड़ ने गठबंधन को नुकसान पहुंचाया।

बिहार में मोदी-नीतीश की जोड़ी की यह जीत न केवल उनके गठबंधन की मजबूती को दिखाती है, बल्कि यह भी साबित करती है कि किस तरह विकास, स्थिरता और चुनावी रणनीतियों ने जनता का समर्थन जीता।

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