Wednesday, December 3

बॉम्बे हाईकोर्ट की नई बिल्डिंग का डिजाइन अलोकतांत्रिक! पूर्व CJI गवई के बाद अब पूर्व जस्टिस गौतम पटेल ने भी उठाए गंभीर सवाल

बॉम्बे हाईकोर्ट की नई बिल्डिंग को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। बीकेसी में बनने वाले इस नए हाईकोर्ट कॉम्पलेक्स के शिलान्यास के वक्त तत्कालीन सीजेआई बीआर गवई ने कड़े शब्दों में कहा था— “न्याय का मंदिर बनाएं, 7-स्टार होटल नहीं”। अब उनके बाद पूर्व जस्टिस गौतम पटेल ने भी इस डिजाइन को अलोकतांत्रिक और कॉलोनियल मानसिकता का प्रतीक करार दिया है।

डिजाइन पर पूर्व जज गौतम पटेल की कड़ी आपत्ति

मुंबई आर्किटेक्ट्स कलेक्टिव की एक विशेष प्रदर्शनी में हिस्सा लेते हुए पूर्व जस्टिस पटेल ने कहा कि हाईकोर्ट की नई बिल्डिंग का डिजाइन आधुनिक न्यायिक मानकों के बिल्कुल विपरीत है। उन्होंने इसे वकीलों और मुकदमे लड़ने वालों के लिए “अनफ्रेंडली” बताया।

जस्टिस पटेल के अनुसार —

  • नई बिल्डिंग का मॉडल लोकतांत्रिक मूल्यों से हटकर जजों को ‘ऊंचा’ और आम जनता को ‘नीचा’ दिखाता है।
  • केस लड़ने वालों के लिए पर्याप्त वेटिंग एरिया और परामर्श स्थल नहीं दिए गए हैं।
  • पूरा डिजाइन ऐसा है मानो वादी-प्रतिवादी को कोर्ट के सामने “हाथ जोड़कर खड़ा दिखाया जाए”।

उन्होंने कठोर शब्दों में कहा— “यह ऐसा डिजाइन है जिसे कभी बनने ही नहीं देना चाहिए।”

कॉलोनियल सोच का प्रतिबिंब — प्रोफेसर मुंतसिर दलवी

आर्किटेक्चर विशेषज्ञ मुंतसिर दलवी ने भी इस डिजाइन की तुलना ईस्ट इंडिया कंपनी के जमाने की कोलकाता के गवर्नर हाउस से की। उनका कहना था—

  • चुना गया डिजाइन बिल्कुल कॉलोनियल आर्किटेक्चर की नकल है।
  • नई इमारत के लिए कोई हेरिटेज बाध्यता नहीं थी, इसके बावजूद ‘पुराने ब्रिटिश दौर’ की झलक क्यों?
  • आधुनिक भारत को भविष्यवादी और समकालीन न्यायप्रियता से मेल खाने वाली बिल्डिंग की जरूरत है, न कि अतीत की नकल की।

कौन बना रहा है हाईकोर्ट का नया कॉम्प्लेक्स?

  • नई बिल्डिंग 30 एकड़ में बनेगी
  • अनुमानित लागत: 3,750 करोड़ रुपये
  • डिजाइनर: हफीज कॉन्ट्रैक्टर
  • प्रदर्शनी में वे डिजाइन भी दिखाए गए जिन्हें फाइनल सूची में शामिल नहीं किया गया था

कई आर्किटेक्ट्स और विशेषज्ञों ने हफीज कॉन्ट्रैक्टर के फाइनल मॉडल पर असहमति जताई है।

पूर्व CJI गवई भी जता चुके हैं नाराजगी

शिलान्यास के समय पूर्व CJI गवई ने कहा था:
“हाईकोर्ट न्याय का मंदिर है, इसे किसी होटल या आलीशान महल की तरह नहीं बनाना चाहिए।”

उनका इशारा डिज़ाइन में दिख रही भव्यता और प्रशासनिक सुविधाओं के अत्यधिक विस्तार की ओर था।

निष्कर्ष

नई बॉम्बे हाईकोर्ट बिल्डिंग का डिज़ाइन सिर्फ आर्किटेक्चरल बहस नहीं, बल्कि न्यायिक मानसिकता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर भी सवाल खड़ा कर रहा है।
पूर्व CJI और पूर्व जस्टिस दोनों की कड़ी आलोचनाओं के बाद अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या सरकार और न्यायपालिका इस डिज़ाइन पर पुनर्विचार करेगी या इसी मॉडल पर आगे बढ़ेगी।

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