Tuesday, November 25

गुमनाम चंदे पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती: राजनीतिक दलों को मिली बड़ी चुनौती, केंद्र और दलों को नोटिस

नई दिल्ली।
राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता की कमी को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर रुख अपनाया है। कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार, चुनाव आयोग और प्रमुख राजनीतिक दलों से जवाब मांगा है। याचिका में आयकर अधिनियम के उस प्रावधान को असंवैधानिक करार देने की मांग की गई है, जिसके तहत राजनीतिक दल 2,000 रुपये से कम का गुमनाम नकद चंदा स्वीकार कर सकते हैं।

याचिकाकर्ता का तर्क है कि यह व्यवस्था चुनाव प्रक्रिया की पवित्रता को कमजोर करती है, क्योंकि मतदाताओं को यह पता ही नहीं चल पाता कि दलों को पैसा कौन दे रहा है और उसके पीछे उद्देश्य क्या है। इससे राजनीतिक दलों और डोनरों के बीच होने वाले लेन-देन पर पर्दा पड़ा रहता है, जो लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए नुकसानदायक है।

चुनाव आयोग को नियम बनाने की मांग

याचिका में मांग की गई है कि चुनाव आयोग स्पष्ट नियम बनाए, जिसके तहत:

  • कोई भी राजनीतिक दल नकद चंदा न ले सके
  • सभी चंदा देने वालों के नाम, पता और पूरा विवरण सार्वजनिक करना अनिवार्य हो
  • दल के पंजीकरण और चुनाव चिह्न आवंटन की शर्तों में यह प्रावधान जोड़ा जाए

साथ ही, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) को निर्देश देने की मांग की गई है कि वह राजनीतिक दलों के पिछले पांच वर्ष के आयकर रिटर्न और ऑडिट रिपोर्ट की जांच करे और जरूरत पड़ने पर टैक्स व पेनल्टी वसूलने के साथ कानूनी कार्रवाई शुरू करे।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने याचिकाकर्ता से पूछा कि इस मुद्दे पर पहले हाई कोर्ट का दरवाजा क्यों नहीं खटखटाया गया। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने कहा कि मामला देशभर के सभी राजनीतिक दलों से जुड़ा है, इसलिए सीधे सुप्रीम कोर्ट का रुख किया गया।

कोर्ट ने दलील स्वीकार करते हुए सुनवाई के लिए सहमति जताई और बीजेपी, कांग्रेस सहित कई दलों, केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किए। मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी।

डिजिटल युग में नकद चंदे पर सवाल

याचिका में यह भी कहा गया है कि UPI और डिजिटल भुगतान बढ़ने के बाद नकद चंदे की आवश्यकता नहीं रही, इसलिए 2,000 रुपये तक गुमनाम चंदा लेने की अनुमति मनमानी और अनुचित व्यवस्था बन चुकी है।

याचिका में सुप्रीम कोर्ट के 2024 के उस महत्वपूर्ण फैसले का हवाला दिया गया है, जिसमें इलेक्ट्रोरल बॉन्ड योजना रद्द की गई थी। आरोप है कि 2024 और 2025 में राजनीतिक दलों द्वारा जमा की गई योगदान रिपोर्टों में कई जगह अधूरी जानकारी दी गई, जिससे पारदर्शिता और प्रभावित हुई।

फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट के इस कदम ने राजनीतिक दलों की फंडिंग व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है और आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर देशभर में नई बहस छिड़ने की संभावना है।

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