
नई दिल्ली:
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में NDA ने रिकॉर्ड बहुमत हासिल कर इतिहास रच दिया। बीजेपी–जेडीयू गठबंधन की इस बंपर जीत ने जहां सत्ता की वापसी सुनिश्चित की, वहीं भीतर ही भीतर नए सवाल भी जन्म दे दिए हैं। खास तौर पर—नीतीश कुमार के बाद बिहार की राजनीति किस दिशा में जाएगी?
इसी तरह महागठबंधन की हार ने विपक्षी खेमे में भी नई चुनौती खड़ी कर दी है—विपक्षी स्पेस का असली वारिस कौन?
नीतीश कुमार का अगला कार्यकाल और विरासत का सवाल
नीतीश कुमार 75 वर्ष के हो चुके हैं। राजनीतिक हलकों में यह सामान्य धारणा बन चुकी है कि यह उनका आखिरी चुनाव हो सकता है। NDA की जीत का बड़ा श्रेय उन्हें मिला जरूर है, लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि जेडीयू में उनके बाद नेतृत्व का स्पष्ट विकल्प दिखाई नहीं देता।
चुनाव से पहले उनके बेटे निशांत कुमार को राजनीति में लाने की चर्चाएं जरूर उठीं, पर वे अभी भी सक्रिय राजनीति से दूर हैं। ऐसे में जेडीयू को अगले कुछ वर्षों में ‘विरासत’ का सवाल निर्णायक रूप से सुलझाना ही होगा।
BJP में भी नेतृत्व को लेकर तस्वीर धुंधली
नीतीश कुमार की लम्बी राजनीतिक छाया में BJP बिहार में अपना कोई बड़ा चेहरा खड़ा नहीं कर सकी। अब जबकि NDA दोबारा सत्ता में लौटा है, पार्टी में भी नेतृत्व की नई तलाश शुरू हो सकती है।
उधर, चिराग पासवान लंबे समय से राज्य की राजनीति में केंद्रीय भूमिका चाहते हैं।
सूत्रों के अनुसार—
चिराग डिप्टी सीएम पद की मांग कर सकते हैं।
उनकी उम्र, करिश्मा और सामाजिक समीकरण को देखते हुए NDA में आगे चलकर उनकी भूमिका और अहम हो सकती है।
RJD का भविष्य धुंधला, वोट बैंक पर भी सवाल
तेजस्वी यादव के नेतृत्व में करारी हार के बाद RJD के भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
यह पहली बार है कि पार्टी का पारंपरिक वोट बैंक भी डगमगाता दिखा—मुस्लिम वोटों का बड़ा हिस्सा RJD से छिटक गया।
इसके साथ ही लालू यादव परिवार में उभरी अंतर्कलह ने पार्टी की चुनौती बढ़ा दी है।
इस स्थिति में सबसे बड़ा सवाल यही है—
विपक्षी स्पेस कौन भरेगा? क्या RJD अपने खोए आधार को वापस ला पाएगी?
कांग्रेस और PK: क्या नया विकल्प?
कांग्रेस के अंदर भी यह आवाज उठ रही है कि RJD के साथ गठबंधन से नुकसान ज्यादा हुआ। लेकिन यदि कांग्रेस खुद को साबित करना चाहती है, तो राज्य में उसे एक मजबूत नेतृत्व खड़ा करना होगा।
उधर, प्रशांत किशोर (PK) अपनी पहली चुनावी परीक्षा से भले भारी जीत न ले पाए हों, लेकिन उन्होंने राज्य में अपनी अलग पहचान स्थापित कर ली है।
अगर वे बिहार में टिके रहते हैं, तो भविष्य में वे विपक्षी स्पेस के मजबूत दावेदार बन सकते हैं।
विपक्ष की अंतिम उम्मीद—तेजस्वी करेंगे ‘कोर्स करेक्शन’?
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि RJD खुद को तेजी से संभालकर नए रणनीतिक ढांचे के साथ आगे बढ़े और तेजस्वी यादव राजनीतिक कोर्स करेक्शन करें, तो अभी भी विपक्षी स्पेस पर पहला हक वही रखेंगे।
बिहार की सियासत अब ऐसे मोड़ पर खड़ी है, जहां
NDA को नीतीश के बाद नया नेतृत्व खोजना होगा
और
विपक्ष को अपनी खोई जमीन बचाने की जंग लड़नी होगी।
आने वाले कुछ महीने तय करेंगे कि 2025 से 2030 के बाद बिहार की राजनीति में कौन-सा चेहरा ‘विरासत’ का असली दावेदार बनेगा।