Saturday, November 22

सोनल मानसिंह: नृत्य के लिए उठीं उंगलियां, आज देश-विदेश में नाम रोशन

मुंबई। शास्त्रीय नृत्य की दुनिया में भारत का नाम रोशन करने वाली सोनल मानसिंह ने 60 के दशक में मात्र 18 साल की उम्र में नृत्य को अपना जीवन चुना। उस समय समाज और परिवार में नृत्य को नीची नजर से देखा जाता था, लेकिन सोनल ने हार नहीं मानी और भरतनाट्यम व ओड़िसी जैसी शास्त्रीय विधाओं में महारत हासिल की। हाल ही में मुंबई में आयोजित इंडिया मैरीटाइम वीक में अपनी प्रस्तुति अमृत मंथनम् से सभी को मंत्रमुग्ध कर देने वाली नृत्यांगना ने NBT से खास बातचीत में अपने सफर की यादें साझा कीं।

संघर्ष और जिद

सोनल ने बताया कि 1963 में उन्होंने घर से भाग कर बेंगलुरु में गुरु प्रो यूएस कृष्णा राव के पास नृत्य की शिक्षा लेने पहुंचीं। उनके परिवार और समाज ने उस समय विरोध जताया, लेकिन उनकी जिद और जुनून ने उन्हें मंजिल तक पहुँचाया। “लोग कहते थे, आपने बिगाड़ दिया है, नाचने वाली बनेगी, मगर मैंने ध्यान नहीं दिया और गुरु के पास चली गई। बाकी झेलो,” सोनल ने कहा।

1965 में विदेश यात्रा और यूरोप में प्रदर्शन ने उनके नाम को और भी स्थापित किया। राष्ट्रपति भवन और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रदर्शनों ने उनके करियर को नई ऊंचाइयां दीं।

महिला सशक्तिकरण और जीवन दर्शन

सोनल मानसिंह ने अपने जीवन में चुनौतियों और सामाजिक बाधाओं का सामना करते हुए अपनी शर्तों पर जीवन जिया। उन्होंने कहा, “हर कदम पर नेगेटिविटी और सोशल स्टिग्मा झेलना पड़ा। जब नृत्य चुना, तब उंगलियां उठीं। लेकिन मैंने खुद को और अपने स्टूडेंट्स को प्राथमिकता दी।”

उनकी कोरियोग्राफी में हमेशा स्त्री सशक्तिकरण और समाजिक संदेश प्रमुख रहते हैं। सोनल ने बताया कि उनके दादा मंगल दास पकवासा जी के प्रगतिशील विचार और परिवार का समर्थन उनके जीवन और कला की प्रेरणा रहा।

सिखाने और आने वाली पीढ़ी

सोनल मानसिंह ने सैकड़ों छात्रों को नृत्य की दीक्षा दी है। उन्होंने कहा कि आज की Gen Z पीढ़ी में धैर्य की कमी है, जबकि शास्त्रीय नृत्य लंबी साधना मांगता है। लेकिन उनका मानना है कि यह कला हमेशा जीवित रहेगी। “यह जीवन को शांति और सुकून देती है। दुनिया में योग और वेदों की तरह शास्त्रीय नृत्य भी घर वापसी कर रहा है,” उन्होंने भविष्य की आशा जताई।

सोनल मानसिंह की कहानी साबित करती है कि जिद, समर्पण और आत्मविश्वास से न सिर्फ व्यक्तिगत मुकाम हासिल किया जा सकता है, बल्कि समाज में बदलाव और सशक्तिकरण की प्रेरणा भी दी जा सकती है।

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