
नई दिल्ली, 21 नवंबर। अरावली की पहाड़ियों और पर्वत श्रृंखला की रक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने अरावली में नई माइनिंग लीज देने पर पूरी तरह से रोक लगा दी है। हालांकि, मौजूदा लीज फिलहाल जारी रहेंगी। सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार से चार राज्यों—गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली—में फैली अरावली रेंज के लिए सस्टेनेबल माइनिंग मैनेजमेंट प्लान (MPSM) तैयार करने का निर्देश भी दिया है।
कोर्ट ने क्या कहा और क्या किया
सुप्रीम कोर्ट की बेंच—CJI बी आर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एन वी अंजारिया—ने सुनवाई के दौरान अरावली पर बनाई गई विशेषज्ञ कमेटी की सिफारिशों को मान्यता दी। बेंच ने कहा कि कोर और इनवॉयलेट एरिया में माइनिंग पूरी तरह प्रतिबंधित होगी। केवल जरूरी, स्ट्रेटेजिक और एटॉमिक मिनरल निकालने की अनुमति दी जा सकती है।
कोर्ट ने एनवायरनमेंट और फॉरेस्ट मिनिस्ट्री (MoEF&CC) और ICFRE को निर्देश दिए हैं कि वे पूरे क्षेत्र के लिए MPSM तैयार करें। MPSM फाइनल होने तक कोई नई माइनिंग लीज नहीं दी जाएगी।
मैनेजमेंट प्लान में ये शामिल होगा
- खनन के लिए स्वीकार्य क्षेत्रों की पहचान
- पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र की निगरानी
- संरक्षण के लिए प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की जांच
- पर्यावरणीय प्रभाव (Environmental Impact) का मूल्यांकन
- इकोलॉजिकल कैपेसिटी का विश्लेषण
- माइनिंग के बाद रेस्टोरेशन और रिहैबिलिटेशन के उपाय
अरावली की पारिस्थितिकी में महत्व
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अरावली पर्वत श्रृंखला पर वनों की कटाई, चराई, गैर-कानूनी माइनिंग और शहरी अतिक्रमण का भारी दबाव है। यह क्षेत्र 22 वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी, चार टाइगर रिजर्व, केवलादेव नेशनल पार्क, सुल्तानपुर, सांभर, सिलिसेढ़ और असोला भाटी जैसे वेटलैंड्स, और चंबल, साबरमती, लूनी, माही, बनास जैसे नदी सिस्टम को रिचार्ज करने वाले एक्वीफर से जुड़ा हुआ है।
CJI बी आर गवई का अंतिम फैसला
यह फैसला CJI बी आर गवई द्वारा लिखा गया उनका आखिरी फैसला है। उन्होंने कोर्ट के निर्देशों को सस्टेनेबल डेवलपमेंट के सिद्धांतों के साथ बैलेंस करते हुए पर्यावरण, इकोलॉजी और जंगलों की रक्षा की पूरी जिम्मेदारी निभाई है।
सुप्रीम कोर्ट का यह कदम अरावली पहाड़ियों और पर्वत श्रृंखला के भविष्य और पारिस्थितिक संतुलन की सुरक्षा के लिए ऐतिहासिक माना जा रहा है।