
नई दिल्ली, विशेष रिपोर्ट — पति-पत्नी के रिश्तों और तलाक के मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। सर्वोच्च अदालत ने स्पष्ट किया है कि केवल अलग रहने भर से यह नहीं माना जा सकता कि शादी खत्म हो चुकी है। अदालत ने कहा कि ऐसे किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले पूरे मामले का गहराई से विश्लेषण जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट की स्पष्ट टिप्पणी: ‘अलग रहना तलाक का आधार नहीं’
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने कहा कि आजकल अदालतें अक्सर यह मान लेती हैं कि पति-पत्नी अगर अलग रह रहे हैं तो उनकी शादी टूट चुकी है। लेकिन यह मानना गलत है। यह पहले तय किया जाना चाहिए कि अलगाव के लिए कौन जिम्मेदार है और क्या किसी पक्ष ने जानबूझकर दूसरे को छोड़ दिया या उसके साथ रहने से इनकार किया।
बेंच ने चेताया कि बिना पुख्ता सबूत के ऐसे निष्कर्ष पर पहुंचना बच्चों पर गंभीर मानसिक प्रभाव डाल सकता है।
फैसले में क्या कहा गया?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि—
- अदालत को रिकॉर्ड में मौजूद सभी सबूतों का गहन विश्लेषण करना चाहिए।
- निर्णय लेते समय पार्टियों की सामाजिक स्थिति, पारिवारिक पृष्ठभूमि और परिस्थितियों का ध्यान रखना जरूरी है।
- बिना उचित पड़ताल के सिर्फ अलगाव को शादी टूटने का कारण नहीं माना जा सकता।
यह टिप्पणी उस अपील पर सुनाई गई जिसमें एक महिला ने हाई कोर्ट द्वारा दिए गए तलाक के आदेश को चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने पति की क्रूरता के आधार पर तलाक की अर्जी मंजूर कर ली थी।
क्या है पूरा मामला?
- शादी: वर्ष 2009
- बेटा: वर्ष 2010 में जन्म
- विवाद: शादी के कुछ समय बाद से ही मतभेद
- पति ने पहले क्रूरता के आधार पर तलाक मांगा, फिर अर्जी वापस ले ली
- 2013 में पति ने दूसरी बार तलाक की अर्जी दी, इस बार ‘छोड़ देने’ (desertion) के आधार पर
- निचली अदालत ने 2018 में पति की अर्जी खारिज की
- हाई कोर्ट ने निचले अदालत का फैसला पलटकर तलाक मंजूर कर दिया
पत्नी का कहना था कि उसे ससुराल से निकाल दिया गया था और अलग रहने पर मजबूर किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि हाई कोर्ट ने पत्नी की इन महत्वपूर्ण दलीलों की अनदेखी की।
साथ ही अदालत ने यह भी नोट किया कि बच्चे की कस्टडी शुरू से ही मां के पास है, जो अपने आप में महत्वपूर्ण तथ्य है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट से दोबारा विचार करने को कहा
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट से तीन मुख्य बिंदुओं पर नए सिरे से विचार करने के निर्देश दिए—
- क्या पत्नी को ससुराल से जबरन निकाला गया था या वह खुद गई?
- क्या पहली तलाक अर्जी वापस लेने के बाद पति उसी आधार पर फिर से अर्जी दे सकता है?
- क्या पति ने पत्नी को रहने की अनुमति न देकर या बच्चे की देखभाल न करके क्रूरता की?
बेंच ने कहा कि हाई कोर्ट के फैसले में इन पहलुओं का कोई विस्तृत विश्लेषण नहीं मिला, इसलिए मामला वापस भेजा जाता है।
अदालत ने दोनों पक्षों को 24 नवंबर 2025 को हाई कोर्ट में उपस्थित होने का निर्देश दिया है।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला वैवाहिक विवादों में एक महत्वपूर्ण मिसाल पेश करता है। अदालत ने साफ कर दिया है कि अलगाव को शादी टूटने की निशानी मान लेना न्यायिक दृष्टि से गलत है। हर मामले में गहराई से जांच, सबूतों का संतुलित विश्लेषण और दोनों पक्षों की परिस्थितियों को समान रूप से सुनना आवश्यक है।