
पटना/नई दिल्ली।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अपने निर्णायक मोड़ पर है। चुनावी मैदान में एक ओर जंगलराज की यादें हैं, तो दूसरी ओर विकास और सुशासन का दावा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने अब चुनावी रणनीति की आखिरी पारी में ‘कट्टा या कानून’ के सवाल के साथ पूरा नैरेटिव बदल दिया है।
🔥 “कट्टा या कानून”— चुनाव का नया मंत्र
भाजपा ने इस बार अपने प्रचार को एक ही मुद्दे पर केंद्रित किया है — “कट्टा या कानून?”
प्रधानमंत्री मोदी ने औरंगाबाद की सभा में कहा —
“राजद के समर्थक कह रहे हैं कि अगर भैया (तेजस्वी) की सरकार बनी, तो कट्टा, दोनाली और फिरौती का दौर लौट आएगा। जनता को तय करना है कि उसे कानून चाहिए या कट्टा संस्कृति।”
गृह मंत्री अमित शाह ने भी जमुई की सभा में तंज कसते हुए कहा —
“अगर तेजस्वी जीतते हैं, तो वे अपहरण का नया विभाग खोल देंगे। बिहार अब विकास की पटरी पर है, हम जंगलराज को लौटने नहीं देंगे।”
🕰️ “जंगलराज” की याद और सुभाष यादव का स्वीकारोक्ति बम
पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के भाई साधु यादव और सुभाष यादव एक समय ‘जंगलराज’ के प्रतीक माने जाते थे।
फरवरी 2025 में सुभाष यादव ने एक चौंकाने वाला बयान देकर बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी।
उन्होंने कहा —
“उस दौर में अपहरण मामलों का प्रबंधन मुख्यमंत्री आवास से होता था। विपक्ष मुझ पर सौदेबाजी का आरोप लगाता था, जबकि असल नियंत्रण ऊपर से चलता था। अगर मैं दोषी होता तो कब का जेल में होता।”
इतना ही नहीं, सुभाष यादव ने यह भी दावा किया —
“लालू यादव की पुत्री रोहिणी आचार्य की शादी में पटना के कार शोरूमों से जबरन नई गाड़ियां मंगवाई गई थीं।”
इस बयान के बाद बिहार की सियासत में भूचाल आ गया था।
🚨 मंत्री का खुलासा: “मेरे बेटे का भी अपहरण हुआ था”
सुभाष यादव के बयान के बाद राज्य के श्रम मंत्री संतोष कुमार सिंह ने एक और बड़ा खुलासा किया। उन्होंने कहा —
“लालू शासनकाल में मेरे बेटे का अपहरण हुआ था। मुझे उसकी रिहाई के लिए राजद नेताओं से गुहार लगानी पड़ी।”
वहीं 2005 के चुनाव प्रचार के दौरान पूर्व डीजीपी डी.पी. ओझा ने कहा था —
“2003 में तत्कालीन जेल मंत्री के रिश्तेदार के पुत्र के अपहरण के लिए 30 लाख रुपये की फिरौती दी गई थी।”
इन घटनाओं ने ‘जंगलराज’ के पुराने जख्मों को फिर से ताजा कर दिया है।
👩🦰 महिलाओं की ताकत — नीतीश का “ट्रम्प कार्ड”
उधर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और केन्द्र सरकार अपनी जनकल्याणकारी योजनाओं को सबसे बड़ा हथियार बना चुके हैं।
‘मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना’ के तहत अब तक 1 करोड़ 51 लाख महिलाओं को ₹10-10 हजार की आर्थिक सहायता दी जा चुकी है।
पहले चरण के मतदान में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों से अधिक रही — इसे एनडीए के पक्ष में माना जा रहा है।
⚖️ एनडीए का “डबल इंजन” बनाम महागठबंधन की “भावनात्मक जंग”
एनडीए विकास और सुशासन की बात कर रहा है, वहीं राजद-जदयू गठबंधन युवाओं और बेरोजगारी को मुद्दा बना रहा है।
लेकिन मोदी-शाह की जोड़ी ने अंतिम ओवरों में गेंद “भावनाओं और सुरक्षा” के पिच पर डाल दी है।
‘जंगलराज बनाम कानूनराज’ की बहस अब हर गांव तक पहुंच चुकी है।
🏁 निष्कर्ष: चुनाव की बाजी अब जनता के हाथ
बिहार की जनता के सामने सवाल अब सीधा है —
क्या वे “कट्टा संस्कृति” की वापसी चाहते हैं या “कानून का शासन” बनाए रखना?
प्रधानमंत्री मोदी ने खेल का रंग बदल दिया है, पर अंतिम फैसला मतदाता के बैलेट बॉक्स में ही तय होगा।