
अफ्रीका की खनिज संपदा पर कब्जे की होड़ में अमेरिका ने 2023 में चीन को पछाड़ा, पहली बार फिर से हासिल की ‘टॉप इन्वेस्टर’ की कुर्सी
नई दिल्ली:
अफ्रीका की धरती सोना, हीरा और खनिज संपदा से लबालब है। यही कारण है कि दुनिया की दो सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्तियां — अमेरिका और चीन — पिछले एक दशक से यहां ‘खनिज युद्ध’ में उलझी हुई हैं।
लेकिन अब तस्वीर बदल गई है। 11 साल बाद अमेरिका ने चीन को पीछे छोड़ते हुए अफ्रीका में फिर से ‘सबसे बड़े निवेशक’ की पोजीशन हासिल कर ली है।
अफ्रीका: सोना, हीरा और क्रिटिकल मिनरल्स का खजाना
अफ्रीका में सिर्फ सोना और हीरा ही नहीं, बल्कि दुनिया के सबसे जरूरी खनिज —
लिथियम, कोबाल्ट, टंगस्टन और रेयर अर्थ एलिमेंट्स — का भी विशाल भंडार है।
इनका इस्तेमाल आज की हर हाई-टेक इंडस्ट्री में होता है —
इलेक्ट्रिक वाहनों से लेकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) डाटा सेंटर और आधुनिक हथियार प्रणालियों तक।
यही वजह है कि चीन और अमेरिका दोनों यहां अपनी आर्थिक और राजनीतिक पकड़ मजबूत करने में जुटे हैं।
चीन का दबदबा और अमेरिकी पलटवार
चीन ने 2012 में अमेरिका को पछाड़ अफ्रीका का सबसे बड़ा निवेशक बन गया था।
इसके बाद पूरे एक दशक तक उसने वहां खनन, इंफ्रास्ट्रक्चर और मिनरल प्रोसेसिंग पर अपनी पकड़ बनाए रखी।
चीन की कंपनियां अफ्रीका में न केवल माइनिंग करती हैं, बल्कि ग्लोबल सप्लाई चेन की प्रोसेसिंग पर भी उनका नियंत्रण है।
लेकिन बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में यह खेल पलट गया।
- अमेरिका का अफ्रीका में निवेश रहा 7.8 अरब डॉलर,
- जबकि चीन का निवेश घटकर 4 अरब डॉलर पर सिमट गया।
इस तरह, 11 साल बाद पहली बार अमेरिका ने अफ्रीका में चीन को पीछे छोड़ दिया।
अमेरिका का नया मिशन: ‘मिनरल इंडिपेंडेंस’
अमेरिका ने अफ्रीका में अपना निवेश बढ़ाने के लिए US International Development Finance Corporation (DFC) को मोर्चे पर उतारा है।
यह सरकारी एजेंसी 2019 में डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान स्थापित की गई थी, जिसका मुख्य उद्देश्य है —
“अफ्रीका में चीन की बढ़ती बादशाहत को चुनौती देना।”
पिछले साल DFC ने रवांडा की माइनिंग कंपनी ट्रिनिटी मेटल्स को
तीन नई माइनें विकसित करने के लिए 3.9 मिलियन डॉलर की ग्रांट दी थी।
यह साफ संकेत है कि अमेरिका अब क्रिटिकल मिनरल्स की सप्लाई चेन में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है।
चीन का ‘खनिज हथियार’
चीन न केवल अफ्रीका में सबसे ज्यादा खनन करता है, बल्कि उसने
क्रिटिकल मिनरल्स की प्रोसेसिंग इंडस्ट्री पर भी एकाधिकार बना रखा है।
जब चाहे, वह इन मिनरल्स की सप्लाई घटाकर दुनिया पर दबाव बनाता है —
यही कारण है कि अमेरिका अब इसे ‘स्ट्रैटेजिक थ्रेट’ मानकर जवाबी रणनीति तैयार कर रहा है।
निष्कर्ष: अफ्रीका बना ‘नई वैश्विक जंग’ का मैदान
एक तरफ चीन अपनी पकड़ बनाए रखने में लगा है, तो दूसरी ओर अमेरिका अपनी पुरानी स्थिति दोबारा हासिल करने की कोशिश कर रहा है।
अफ्रीका अब सिर्फ संसाधनों की धरती नहीं रहा, बल्कि वह भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का केंद्र बन चुका है।
गोल्ड, डायमंड और मिनरल्स की इस जंग में सवाल यही है —
“आने वाले दशक में अफ्रीका का असली बॉस कौन बनेगा – अमेरिका या चीन?”