
देहरादून (थानो)। उत्तराखंड की वादियों में बसा शांत, सौम्य और प्रेरणादायी गाँव थानो आज साहित्य और संस्कृति का नया तीर्थ बन चुका है। यही वह भूमि है जहाँ शब्द साधना बन जाते हैं और सृजन आराधना। यहाँ स्थापित देश का पहला ‘लेखक गाँव’ अब केवल एक विचार नहीं, बल्कि एक जीवंत आंदोलन बन गया है — वह आंदोलन जो रचनाकारों को फिर से उनकी जड़ों, प्रकृति और आत्मा से जोड़ता है।
‘लेखक गाँव’ : शब्दों की साधना का केंद्र
इस अनूठी अवधारणा के सूत्रधार हैं पूर्व मुख्यमंत्री, शिक्षाविद् और साहित्यकार डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, जिन्होंने यह महसूस किया कि आज के लेखक और कवि भीड़भाड़ और तकनीक के युग में वह सृजनात्मक एकांत खो चुके हैं, जो उनके लेखन की आत्मा हुआ करता था।
इसी भाव से उन्होंने कल्पना की — एक ऐसे स्थान की, जहाँ प्रकृति की गोद में बैठकर लेखक अपने विचारों को सांस लेने दें, शब्दों को जीवन मिले और रचना आत्म-साक्षात्कार बन जाए।
देहरादून के निकट बसे थानो गाँव को इस सपने के साकार रूप के रूप में चुना गया। हिमालय की छाया, नदी की सरगम और जंगलों की शांति यहाँ आने वाले हर रचनाकार को भीतर तक स्पर्श करती है।
‘स्पर्श हिमालय महोत्सव’ से मिली वैश्विक पहचान
अक्टूबर 2024 में जब स्पर्श हिमालय फाउंडेशन ने यहाँ पहला ‘स्पर्श हिमालय महोत्सव’ आयोजित किया, तो इस पर्वतीय गाँव ने पूरी दुनिया का ध्यान खींच लिया।
65 से अधिक देशों के लेखक, कवि और कलाकार इस उत्सव का हिस्सा बने। यह आयोजन हिंदी और भारतीय संस्कृति के वैश्विक आकर्षण का प्रमाण बन गया।
अब यह महोत्सव हर वर्ष आयोजित होने की परंपरा बन चुका है — और इस वर्ष 3 से 5 नवम्बर 2025 को इसका अगला अध्याय लिखा जाएगा।
थीम : “शब्द से विश्व तक – संस्कृति का संवाद”
इस बार का स्पर्श हिमालय महोत्सव-2025 और भी विराट स्वरूप में आयोजित होगा। इसमें भारत के साथ अमेरिका, फ्रांस, जापान, नेपाल, श्रीलंका सहित अनेक देशों के कवि, लेखक, चित्रकार, फिल्मकार और संगीतज्ञ शामिल होंगे।
महोत्सव का मुख्य विषय रहेगा — “शब्द से विश्व तक : संस्कृति का संवाद”, जो हिंदी भाषा की वैश्विक भूमिका और भारतीय संस्कृति की विश्वगामी दृष्टि को रेखांकित करेगा।
‘लेखक गाँव’ : रचनाकारों का तपोवन
थानो का ‘लेखक गाँव’ आधुनिक सुविधाओं से युक्त होने के बावजूद अपनी पहाड़ी परंपरा की आत्मा को संजोए हुए है।
यहाँ बने ‘लेखक कुटीर’ उन रचनाकारों के लिए हैं जो प्रकृति की गोद में रहकर अपनी लेखनी को निखारना चाहते हैं।
प्रत्येक कुटीर का नाम भारत के प्रसिद्ध कवियों और लेखकों के नाम पर रखा जाएगा — ताकि हर आगंतुक को प्रेरणा का स्पर्श मिले।
यहाँ का “हिमालयी पुस्तकालय” सृजन का मंदिर है, जहाँ साहित्य, इतिहास, दर्शन और लोकसंस्कृति की अमूल्य धरोहरें सुरक्षित हैं। विशेष रूप से हिमालयी राज्यों की लोककथाएँ, दुर्लभ पांडुलिपियाँ और पारंपरिक कलाकृतियाँ इसे अद्वितीय बनाती हैं।
प्रकृति, संस्कृति और आत्मा का संगम
‘लेखक गाँव’ केवल इमारतों का समूह नहीं, बल्कि एक जीवंत सांस्कृतिक पारिस्थितिकी है। यहाँ संजिवनी वाटिका और नक्षत्र वाटिका जैसे स्थल रचनाकारों को ब्रह्मांड और प्रकृति से जोड़ते हैं।
यहाँ की हवा, पहाड़ और नीरवता हर लेखक को भीतर झांकने, स्वयं को सुनने और नए विचारों को जन्म देने की प्रेरणा देते हैं।
संस्कृति संरक्षण का केंद्र बनेगा थानो
यह गाँव आधुनिक साहित्य के साथ-साथ भारतीय सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण का भी प्रतीक है।
यहाँ बन रहा “गंगा और हिमालय संग्रहालय” आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश देगा कि संस्कृति केवल अतीत की स्मृति नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य की शक्ति है।
हिंदी का वैश्विक विस्तार
‘स्पर्श हिमालय महोत्सव’ ने हिंदी भाषा को अंतरराष्ट्रीय मंच पर नई ऊँचाई दी है।
विदेशों से आए लेखकों ने न केवल हिंदी साहित्य का अध्ययन किया, बल्कि उसे अपनी भाषाओं में अनुवाद करने का संकल्प भी लिया। यह प्रयास भारत की सॉफ्ट पावर को नई दिशा दे रहा है।
भविष्य की राह : शब्दों का हिमालय
थानो का “लेखक गाँव” आने वाले वर्षों में भारत के सांस्कृतिक आत्मविश्वास का प्रतीक बनने जा रहा है।
यह वह स्थान है जहाँ शब्द हिमालय की ऊँचाई पर चढ़ते हैं और विचार गंगा की तरह प्रवाहित होते हैं।
जब 3 से 5 नवम्बर 2025 को फिर “स्पर्श हिमालय महोत्सव” का दीप प्रज्वलित होगा, तो यह केवल एक आयोजन नहीं — बल्कि भारत की सृजनात्मा का उत्सव होगा।
“थानो का लेखक गाँव हमें याद दिलाता है कि जब साहित्य और संस्कृति हाथ मिलाते हैं, तो समाज केवल आगे नहीं बढ़ता — वह अमरता की ओर बढ़ता है।”