
नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महिला वकील के चलती कार से वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए वर्चुअल कोर्ट में पेश होने पर कड़ी नाराजगी जताई है। अदालत ने कहा कि यह तरीका न्यायिक कार्यवाही की गरिमा के खिलाफ है और इससे न्याय प्रक्रिया प्रभावित होती है।
चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की डिवीजन बेंच ने 3 नवंबर को सुनवाई के दौरान कहा कि बार के सदस्यों को बार-बार चेतावनी देने के बावजूद, कुछ वकील अब भी इस तरह का गैरजिम्मेदार रवैया अपना रहे हैं।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी
अदालत ने कहा कि
“वकीलों द्वारा चलती कारों में बैठकर वर्चुअल कोर्ट में पेश होना न केवल न्यायिक समय की बर्बादी है, बल्कि यह न्याय तक पहुंचने के अधिकार में भी बाधा डालता है। यह कोर्ट के उद्देश्य और गरिमा दोनों के विपरीत है।”
बेंच ने स्पष्ट किया कि कोर्ट इस तरह से पेश होने के तरीके की किसी भी परिस्थिति में सराहना नहीं करता।
कार में सफर करती वकील की दलीलें अधूरी रहीं
यह मामला तब सामने आया जब एक महिला वकील यात्रा के दौरान वीडियो लिंक के जरिए पेश हुईं। चलते वाहन में नेटवर्क की समस्या के कारण उनकी दलीलें रुक-रुककर सुनी गईं और वह सिर्फ इतना ही कह पाईं कि उन्होंने 2 नवंबर को अपने क्लाइंट के लिए वकालतनामा दायर किया था।
बेंच ने इस व्यवहार को रिकॉर्ड पर लिया, लेकिन उस समय कोई आदेश पारित नहीं किया। अगले दिन जब मामला दोबारा लिया गया, तो वकील स्वयं कोर्ट में उपस्थित हुईं और माफी मांगी। उन्होंने कहा कि वह हमेशा कोर्ट में उपस्थित रहने की कोशिश करती हैं।
“कोर्ट की गरिमा आप पर निर्भर करती है” – बेंच
चीफ जस्टिस की बेंच ने कहा कि,
“कोर्ट और विधिक पेशे की गरिमा आप जैसे वकीलों पर निर्भर करती है। अगर आप कोर्ट की गरिमा का सम्मान नहीं करते, तो कम से कम अपने पेशे का तो करें।”
बेंच ने यह भी कहा कि न्यायपालिका की प्रतिष्ठा और प्रोफेशनल आचरण वकीलों के व्यवहार से ही बनते हैं, इसलिए सभी सदस्यों को पेशे की मर्यादा का पालन करना चाहिए।
आगे की सुनवाई टली
महिला वकील की माफी स्वीकार करते हुए अदालत ने मामला आगे की तारीख के लिए स्थगित कर दिया, लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि भविष्य में ऐसे व्यवहार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
(संपादकीय टिप्पणी)
डिजिटल युग में जहां कोर्ट ने तकनीक को अपनाकर वर्चुअल सुनवाई की सुविधा दी है, वहीं पेशे की शालीनता और अनुशासन को बनाए रखना हर वकील की जिम्मेदारी है। दिल्ली हाई कोर्ट की यह टिप्पणी न्यायिक गरिमा और प्रोफेशनल एथिक्स की याद दिलाती है — टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल सुविधाजनक हो सकता है, लेकिन सम्मान की सीमाओं के भीतर ही होना चाहिए।