
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजनीति में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की तकरार किसी से छिपी नहीं है। दोनों नेताओं के बीच राजनीतिक कटाक्ष, व्यंग्य और जुबानी जंग लंबे समय से चलती आ रही है। हाल ही में दोनों नेताओं की पटना एयरपोर्ट पर मुस्कराते हुए मुलाकात की तस्वीरें वायरल हुईं, लेकिन इस सौहार्द्र के पीछे पुरानी प्रतिद्वंद्विता आज भी बरकरार है।
पुराने कटाक्ष और तंज का सिलसिला
डिप्टी सीएम मौर्य अकसर समाजवादी पार्टी को ‘समाप्तवादी पार्टी’ कहकर चुटकी लेते हैं, जबकि अखिलेश यादव ने उन्हें तंज कसते हुए ‘स्टूल मंत्री’ कहा था। यह टिप्पणी तब आई थी जब एक कार्यक्रम में सीएम योगी आदित्यनाथ और डॉ. दिनेश शर्मा कुर्सी पर बैठे थे और मौर्य एक छोटे स्टूल पर बैठे नजर आए थे।
अखिलेश ने 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद केशव मौर्य पर निशाना साधते हुए कहा था कि अगर वह “भाजपा के 100 विधायक लेकर आ जाएं तो सपा उन्हें मुख्यमंत्री बनवा देगी।” इसे उन्होंने ‘मॉनसून ऑफर’ का नाम दिया था, जो भाजपा की अंदरूनी राजनीति पर सीधा प्रहार था।
अखिलेश के व्यंग्य: ‘गवर्नमेंट सर्वेंट’ से लेकर ‘वाई-फाई पासवर्ड’ तक
अखिलेश यादव ने एक विवाह समारोह में मौर्य को लेकर कहा था,
“उन्होंने क्या सपना देखा था और क्या हासिल हुआ — अब तो वो गवर्नमेंट सर्वेंट बनकर रह गए हैं।”
इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कहा था कि दिल्ली वाई-फाई का पासवर्ड केशव प्रसाद मौर्य हैं, यानी वे सिर्फ दिल्ली के इशारे पर काम करते हैं।
मौर्य का पलटवार: ‘पीडीए नहीं, परिवार डेवलपमेंट एजेंसी’
केशव प्रसाद मौर्य भी पीछे नहीं रहते। वह अकसर कहते हैं कि अखिलेश यादव मजबूत पिछड़े नेताओं को बर्दाश्त नहीं कर पाते।
उन्होंने सपा के ‘पीडीए’ (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) नारे पर तंज कसते हुए कहा था —
“सपा का असली मतलब है परिवार डेवलपमेंट एजेंसी, जो सिर्फ तुष्टिकरण की राजनीति करती है।”
मौर्य का यह भी कहना है कि वह अखिलेश के लिए हमेशा सम्मानजनक शब्दों का प्रयोग करेंगे, लेकिन जनता उनके अपमान की राजनीति का जवाब जरूर देगी।
सदन तक पहुंची तकरार
मई 2022 में विधानसभा सत्र के दौरान दोनों नेताओं के बीच तीखी बहस हो गई थी। मौर्य ने सपा सरकार के कार्यकाल पर तंज कसा तो अखिलेश भड़क उठे। मामला इतना बढ़ा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को हस्तक्षेप कर सदन में मर्यादा बनाए रखने की अपील करनी पड़ी।
‘सैफई की जमीन’ पर विवाद
सत्र के दौरान मौर्य ने अखिलेश पर कटाक्ष किया कि वह जिन परियोजनाओं का श्रेय लेते हैं, ऐसा लगता है जैसे उन्होंने “सैफई की जमीन बेचकर एक्सप्रेस-वे और मेट्रो बनवाई हो।”
इस बयान पर अखिलेश की प्रतिक्रिया को भाजपा ने “पिता के अपमान” से जोड़कर बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना दिया था।
ओबीसी राजनीति की जंग
इस पूरी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के केंद्र में ओबीसी वोट बैंक है।
केशव मौर्य भाजपा में गैर-यादव पिछड़ों का चेहरा हैं, जबकि अखिलेश यादव खुद को पूरे पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग का प्रतिनिधि बताते हैं।
दोनों नेताओं के कटाक्ष और बयानबाजी इसी वोट बैंक की खींचतान का हिस्सा माने जाते हैं।
निष्कर्ष:
अखिलेश यादव और केशव प्रसाद मौर्य की जुबानी जंग सिर्फ राजनीतिक वाद-विवाद नहीं, बल्कि सत्ता और सामाजिक वर्चस्व की लड़ाई का प्रतीक बन चुकी है।
जहां एक ओर अखिलेश ‘तंज की राजनीति’ से माहौल गरमाते हैं, वहीं मौर्य भी हर जवाब को ‘तीखे व्यंग्य’ में बदलने का हुनर रखते हैं।
उत्तर प्रदेश की सियासत में यह द्वंद्व फिलहाल ठंडा पड़ने वाला नहीं है — क्योंकि यही तकरार दोनों को सुर्खियों में बनाए रखती है।