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बिहार के आरक्षण कानून पर असर…
बिहार के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को देखें तो नीतीश कुमार की सरकार के लिए ऐसा करना अब आसान हो जाएगा. इसलिए कि नीतीश ने पहले ही जाति सर्वेक्षण के आधार पर जातियों की संख्या और उनके सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ेपन का डाटा संग्रह कर लिया है. इसी डाटा के आधार पर राज्य सरकार ने 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को बढ़ा कर 65 प्रतिशत भी कर लिया था, जिस पर पटना हाईकोर्ट की रोक को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा है. हालांकि मामले पर अभी आगे भी सुनवाई होनी है. इसलिए बिहार सरकार अब भी बढ़ाई गई आरक्षण सीमा के बरकरार रहने की उम्मीद पाले हुए है. हालांकि जाति सर्वेक्षण के कड़े राज्य सरकार के लिए फिलहाल इस मामले में ही कारगर साबित होंगे कि इसके आधार पर वह एससी-एसटी के आरक्षण कोटे के भीतर उनमें शामिल जातियों का सिर्फ कोटा घटा-बढ़ा सकती है.
बिहार में SC-ST की 54 जातियां हैं…
बिहार सरकार ने अपने जाति सर्वेक्षण में कुल 214 जातियों को शामिल किया था. इनमें अनुसूचित जाति (SC) वर्ग में 22 और अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग में 32 जातियां शामिल थीं. इसके अलावा पिछड़ा वर्ग में 30, अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) में 113 और उच्च जाति में सात जातियों की गणना कराई गई थी. इसी आधार पर राज्य सरकार ने आरक्षण की सीमा में संशोधन किया. बिहार में अनुसूति जाति की आबादी 19.65 और अनुसूचित जन जाति की आबादी 1.06 प्रतिशत है. इसे ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने अनुसूचित जाति का आरक्षण कोटा 14 से बढ़ा कर 20 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति का कोटा एक प्रतिशत से बढ़ा कर दो प्रतिशत कर दिया था. सभी वर्गों की आरक्षण सीमा 50 से बढ़ा कर राज्य सरकार ने 65 प्रतिशत कर दी थी. आर्थिक रूप से कमजोर उच्च जाति के लोगों के लिए भी 10 प्रतिशत आरक्षण को राज्य सरकार ने बरकरार रखा था. यानी कुल 75 प्रतिशत आरक्षण का कानून बना कर बिहार देश में सर्वाधिक आरक्षण देने वाला राज्य बन गया था.
तय कोटे को ही घटना-बढ़ाना संभव…
बिहार में आरक्षण सीमा की बढ़ोतरी को जस्टिफाई करने के लिए अभी सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले का इंतजार करना होगा. अगर इसमें उसे कामयाबी नहीं मिली तो मौजूदा सीमा में ही सरकार को सिर्फ एससी और एसटी की तय आरक्षण सीमा में ही जरूरत के हिसाब से घट-बढ़ करनी होगी. यानी एससी के लिए निर्धारित 14 प्रतिशत कोटे में ही पिछड़ेपन के मद्देनजर बिहार सरकार को इस समूह की 22 जातियों में आरक्षण कोटे को संशोधित करना होगा. इसी तरह एसटी समूह की 32 जातियों के बीच एक प्रतिशत आरक्षण लिमिट में ही कम या अधिक करना होगा. वैसे सुप्रीम कोर्ट का फैसला देश के सभी राज्यों में मान्य होगा.
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राज्यों में SC-ST कास्ट अलग-अलग…
हालांकि अलग-अलग राज्यों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में शामिल जातियों की संख्या अलग-अलग हैं. बिहार की 22 अनुसूचित जातियों में 21 को महादलित की श्रेणी में लाया गया है. राज्य की अनुसूचित जाति में बंतार, बौरी, भोगता, भुईया, चमार, मोची, चौपाल, दबगर, धोबी, डोम, धनगड़, (पासवान) दुसाध, कंजर, कुररियार, धारी, धारही, घासी, हलालखोर, हरि, मेहतर, भंगी और लालबेगी शामिल हैं. इसी तरह अनुसूचित जनजाति में असुर, बैगा, बंजारा, बाथुड़ी, बेरिया, भूमिज, बिनझिया और बिरहोर को रखा गया है.
क्रीमी लेयर से ही तय होगा आरक्षण…
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर एससी-एसटी की उन जातियों पर अधिक पड़ेगा, जो सामाजिक-शैक्षणिक और आर्थिक रूप से समृद्ध तो हो गई हैं, लेकिन आरक्षण का लाभ समान रूप से ले रही हैं. सुप्रीम कोर्ट का फैसला इसी असमानता को दूर करने की दृष्टि से आया है. पर, जिस तरह बिहार सरकार ने इनके लिए निर्धारित आरक्षण कोटे में बदलाव किया है, सुप्रीम कोर्ट के पैसले के बाद अब वैसा संभव नहीं होगा. निर्धारित कोटे में ही घट-बढ़ की जा सकती है.
ओमप्रकाश अश्क
प्रभात खबर, हिंदुस्तान और राष्ट्रीय सहारा में संपादक रहे. खांटी भोजपुरी अंचल सीवान के मूल निवासी अश्क जी को बिहार, बंगाल, असम और झारखंड के अखबारों में चार दशक तक हिंदी पत्रकारिता के बाद भी भोजपुरी के मिठास ने बांधे रखा. अब रांची में रह कर लेखन सृजन कर रहे हैं.
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