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अररिया. बिहार में पिछले कुछ समय में जूट की खेती के प्रति किसानों का रुझान एकदम से बढ़ा है. कम लागत में बेहतर उत्पादन और सरकारी स्तर पर प्रोत्साहन मिलने के काऱण किसानों के लिए जूट की खेती मुनाफे का सौदा बन गयी है. पिछले एक दशक में जूट की खेती का रकबा जिले में छह हजार हेक्टेयर तक बढ़ा है. सीमांचल में जूट की मांग अधिक होने के कारण किसानों को बाजार भाव भी अधिक मिल रहा है.
इलाके की आरबीएचएम जूट मिल और निजी क्षेत्र की सनबायो जूट मिल बंद हो गयी थीं. उसके बाद से पाट की खेती से स्थानीय किसान मुंह मोड़ने लगे थे क्योंकि उनके माल के लिए मार्केट नहीं मिल पा रहा था. लेकिन पिछले दो साल से जूट की खेती के लिए अनुदान और किसानों को ट्रेनिंग देने की योजना शुरू हुई. इसके बाद किसान फिर जूट की खेती की तरफ लौट पड़े.
ऐसे तैयार होता है जूट का रेशा
जूट की बुआई मार्च महीने के मध्य में की जाती है. तीन महीने बाद इसका रेशा पककर कटाई के लायक हो जाता है. एक एकड़ खेती में 18 हजार रुपए लागत आती है. जूट का रेशा पककर तैयार होने के बाद कटाई की जाती है फिर गहरे पानी में तीन से चार दिन तक उसे सड़ाकर पाट का रेशा निकाला जाता है. एक एकड़ में करीब 10 क्विंटल तक पाट का उत्पादन होता है. वर्तमान में जूट का बाजार भाव 7200 से 8200 रूपये प्रति क्विंटल है. बाजार भाव अधिक मिलने से लागत के अनुरूप किसानों को दोगुना मुनाफा हो रहा है.
अच्छी क्वालिटी का जूट
बिहार का पड़ौसी राज्य पश्चिम बंगाल होने के कारण जूट की मांग काफी है. सीमांचल में होने वाले जूट की किस्म उन्नत होने के कारण पश्चिम बंगाल में इसकी भारी डिमांड है. उन्नत किस्म के जूट के रेशे से बोरा, दरी, रस्सी, कपड़ा सहित अन्य सामान तैयार किया जाता है.
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