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एक रिपोर्ट के मुताबिक ‘भोले बाबा’ ने तब कथित तौर पर एक 16 साल की लड़की के शव को उसके परिवार से जबरन छीन लिया था. उन्होंने यह दावा किया था कि वह उसे वापस जीवित कर देंगे. बाद में यह मामला बंद कर दिया गया था. 1990 के दशक में उत्तर प्रदेश पुलिस से कांस्टेबल सूरज पाल के रूप में कासगंज से सेवा छोड़कर स्वयंभू धार्मिक उपदेशक बनने के बाद, अब दो दशक से भी अधिक समय में उन्होंने काफी संख्या में अनुयायी जुटा लिए हैं. जिनमें से अधिकतर कम आय वाले दलित परिवार हैं. जहां पुरुष मजदूर, राजमिस्त्री, खेतिहर मजदूर, सफाई कर्मचारी, बढ़ई या कालीन बेचने का काम करते हैं. इनमें से कई उनकी बढ़ती लोकप्रियता के गवाह हैं.
‘भोले बाबा’ दलित परिवार से हैं
कई लोगों ने कहा कि उन्हें ‘भोले बाबा’ की ओर आकर्षित करने वाली बात यह थी कि वे भी दलित परिवार से थे. वे कोई प्रसाद भी नहीं मांगते थे. अपनी बहन तारामती के साथ सत्संग में आई उर्मिला देवी ने कहा कि बाबा कुछ भी नहीं लेते या मांगते हैं. अपने सत्संग में वे हमें झूठ नहीं बोलने और मांस, मछली, अंडा और शराब नहीं खाने के लिए कहते थे. विधवा तारामती भी घायलों में शामिल हैं. दोनों बहनें मथुरा की रहने वाली हैं.
ज्यादातर महिला भक्त 40-70 वर्ष की
यह चौथी बार था जब तारामती ‘भोले बाबा’ के सत्संग में भाग ले रही थी, और उसने अपनी बहन को इस बार शामिल होने के लिए कहा था. दोनों बहनों की तरह भोले बाबा के ज्यादातर महिला भक्त 40-70 वर्ष की आयु वर्ग की हैं. तारामती ने अस्पताल के बिस्तर से कहा कि जब सत्संग खत्म हो रहा था, तब भोले बाबा ने कहा कि ‘आज प्रलय आएगी, और फिर प्रलय आ गई.’
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