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इस रिपोर्ट से पता चलता है कि पिछले एक दशक यानी मोदी युग में न केवल लोगों की शुद्ध बचत घटी है, बल्कि इसी बीच आई वैश्विक कोरोना महामारी के चलते भी लोगों के बचत करने के व्यवहार में आमूल चूल बदलाव आया है। यदि मोदी सरकार इसे समय रहते ही समझ गई होती तो उसे गठबंधन की बैशाखी पर चलने की जरूरत ही नहीं पड़ती और न ही 400 पार का सपना टूटता।
अब बात करते हैं आरबीआई की इस रिपोर्ट की, जिसके मुताबिक, देशवासियों के बीच बचत कम होने के दो मुख्य कारण हैं- पहला यह कि अब लोग सोना-चांदी, जमीन-घर और म्यूचुअल फंड में निवेश कर रहे हैं। और दूसरा यह कि, लोगों का घरेलू खर्च यानी शिक्षा, स्वास्थ्य, आम उपभोग आदि बढ़ा है, जिसकी वजह से शुद्ध वित्तीय बचत में भारी कमी दिखाई पड़ी है। बता दें कि वित्त वर्ष 2022-23 में भारत की सकल बचत दर में सकल शुद्ध प्रयोज्य आय 29.7 प्रतिशत थी। जिसमें परिवार के प्राथमिक बचतकर्ता की हिस्सेदारी 60.9 प्रतिशत रही है, जबकि वर्ष 2013-22 के बीच का औसत 63.9 प्रतिशत रहा। इसी तरह से लोगों के पास शुद्ध वित्तीय बचत में भी 11.3 प्रतिशत की गिरावट आई है जो 2022-23 में गिरकर 28.9 प्रतिशत रह गई है, जबकि 10 वर्षों का औसत 39.8 प्रतिशत रहा है।
# कोरोना काल में बचत बढ़ी, लेकिन इसके बाद कर्ज लेने की प्रवृत्ति में हुआ इजाफा
वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान भले ही घरेलू बचत में बढ़ोतरी देखने को मिली थी, लेकिन वह ज्यादा स्थाई नहीं रह पाई। आंकड़े बताते हैं कि इस दौरान कुल घरेलू बचत 51.7 प्रतिशत तक पहुंच गई थी, परंतु उसके बाद जैसे ही लॉकडाउन खुला तो लोगों ने अपनी बचत को सम्पत्तियों के खरीदने पर खर्च करना शुरू कर दिया। इसके साथ ही साथ लोगों की देनदारियों में भी बढ़ोतरी हुई, जिससे नगदी के रूप में बचत गिरती चली गई। वहीं, कोरोना के बाद से लोग बचत को बैंक खातों में एफडी व अन्य रूप में रखने से बच रहे हैं। जबकि सम्पत्तियों को खरीदने के लिए कर्ज लेने से भी परहेज नहीं कर रहे हैं। यही वजह है कि कृषि और व्यवसायिक लोन में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की जीडीपी का 40 प्रतिशत घरेलू उधार हो गया है, जो दुनिया की उभरती हुई अर्थव्यवस्था वाले देशों में इंडोनेशिया, मैक्सिको, पौलेंड और ब्राजील से अधिक है।
# देश के जीडीपी में वित्तीय बचत की हिस्सेदारी हुई कम
वहीं, आमलोगों के खर्चों में लगातार हो रही बढ़ोतरी के चलते शुद्ध रूप से वित्तीय बचत में गिरावट आई है। यदि मोदी सरकार के 10 वर्ष के कार्यकाल के औसत के हिसाब से भी देखा जाए तो जीडीपी में शुद्ध बचत की हिस्सेदारी 2.7 फीसदी कम हो गई है। कहने का मतलब यह कि एक दशक पहले के आठ प्रतिशत से घटकर यह 2022-23 में 5.3 फीसदी पर आ गई है,जो चिंता की बात है।
# सिर्फ शेयर बाजार के लोगों को मिल रहा है अच्छा रिटर्न
रिपोर्ट बताती है कि अब लोगों को शेयर बाजार से अच्छा रिटर्न मिल रहा है, जो किसी भी बैंक और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा दिये जाने वाले ब्याज से कहीं ज्यादा है। सामान्य तौर पर बैंकों में सात से आठ प्रतिशत का सालाना रिटर्न मिल रहा है, लेकिन शेयर बाजार में पैसा लगाने वालों को मोटा रिटर्न मिला है। खासकर निफ्टी में पैसा लगाने वालों को ठीक-ठाक रिटर्न मिला है। आंकड़े बता रहे हैं कि जहां निफ्टी 50 में पहले वर्ष 29 प्रतिशत, दूसरे वर्ष 13 प्रतिशत और तीसरे वर्ष 15 प्रतिशत का रिटर्न मिला है, वहीं निफ्टी मिडकैप 150 में पहले वर्ष 56 प्रतिशत, दूसरे वर्ष 26 प्रतिशत और तीसरे वर्ष 25 प्रतिशत का रिटर्न मिला है। वहीं, निफ्टी स्मॉलकैप 250 में पहले वर्ष 63 प्रतिशत, दूसरे वर्ष 23 प्रतिशत और तीसरे वर्ष 28 प्रतिशत का रिटर्न मिला है। जबकि निफ्टी माइक्रोकैप 250 में पहले वर्ष 85 प्रतिशत, दूसरे वर्ष 37 प्रतिशत और तीसरे वर्ष 42 प्रतिशत का रिटर्न मिला है।
इससे स्पष्ट है कि मोदी सरकार के बीते एक दशक में जहां एक ओर लोगों का खर्च बेतहाशा बढ़ा है, वहीं आमदनी लुढ़की है और बचत घटी है। वहीं, सिर्फ शेयर धारक ही मालामाल हुए हैं। इस स्थिति से परेशान आमलोगों ने सरकार की इंजन पार्टी रही भाजपा का संख्या बल घटा दिया, ताकि वह अपने मित्र दलों की सलाह भी सुने और पूंजीवादी ताकतों के हाथों खेलने के बजाय आम लोगों के लिए भी सही नहीं बनाए। यदि अब भी वह जनभावनाओं को दरकिनार करके चलेगी तो संभव है कि जनता उसके नेतृत्व वाली एनडीए गठबंधन को ही सत्ता से बाहर कर दे। इसलिए समय रहते सम्भलना जरूरी है, रिपोर्ट यही चुगली कर रही है।
– कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक
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