पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: निंदा में भी अपने हित की बात ढूंढने की आदत बनाएं

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54 मिनट पहले

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पं. विजयशंकर मेहता - Dainik Bhaskar

पं. विजयशंकर मेहता

क्या आप अपनी निंदा सुनकर बेचैन हो जाते हैं, आवेश में आ जाते हैं? तो एक समझदारी शुरू कर दीजिए। ये लेनदेन की दुनिया है। हम ना चाहते हुए भी हानि-लाभ सीख जाते हैं। पर अब एक लाभ उठाना सीखा जाए और वो है अपनी निंदा से लाभ उठाएं। जैसे ही हमारी कोई निंदा करे, हम तुरंत फायदा ये उठाएं कि इससे क्या सीखा जा सकता है।

इसमें हमारे हित की बात क्या है। कौन-सा सुधार हम कर सकते हैं। और यदि कुछ भी न सूझे तो कम से कम निंदा से निराश न हों। यदि आपको निंदा सहन नहीं होती हो तो एक आदत डालें। प्रतिदिन अलग-अलग विचारों के लोगों से जरूर मिलें। अलग-अलग स्थितियों के बारे में पढ़ें।

जिनके बारे में बिल्कुल जानकारी न हो, उनकी भी थोड़ी-बहुत जानकारी लेते रहें। दुनिया तेजी से बदल रही है। इसलिए आपकी रुचि का विषय ना भी हो, तो भी जानकारी लेने की आदत बनाएं। इस तरह आप विपरीत विचार के लोगों, विपरीत परिस्थितियों से बेचैन नहीं होंगे और शायद निंदा सुनने की आदत परिपक्व हो जाएगी। फिर निंदा में भी आप लाभ ही ढूंढेंगे।

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