संजय कुमार का कॉलम: मध्यम-उच्च मध्यम वर्ग का समर्थन गंवा रही है भाजपा

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26 मिनट पहले

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संजय कुमार, प्रोफेसर व राजनीतिक टिप्पणीकार - Dainik Bhaskar

संजय कुमार, प्रोफेसर व राजनीतिक टिप्पणीकार

केंद्रीय बजट के कथित रूप से मध्यम वर्ग विरोधी होने के कारण उसकी आलोचना की जा रही है। इसमें देश के व्यापक मध्यम वर्ग को कोई राहत नहीं दी गई है, जो कि कुल आबादी का लगभग 31% है। ऐसा नहीं है कि अतीत में पेश किए गए बजटों ने मध्यम वर्ग की मांगों और जरूरतों पर बहुत ध्यान दिया हो। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों में मध्यम वर्ग भाजपा से दूर जाता नजर आया था।

यह पार्टी से मध्यम वर्ग के मोहभंग का संकेत था। ऐसे में उम्मीद थी कि बजट इस वर्ग को कुछ सकारात्मक संकेत दे सकता है, जो कि दशकों से भाजपा का कोर-वोटर रहा है। वित्त मंत्री ने मध्यम वर्ग के सामने आने वाली चुनौतियों को तो स्वीकार किया और कर-समायोजन के जरिए राहत प्रदान करने के सरकार के प्रयासों पर जोर भी दिया। लेकिन मध्यम वर्ग के लिए कर एक बड़ी चिंता है।

यह याद रखा जाना चाहिए कि यह वर्ग ही सबसे ज्यादा टैक्स देता है। लेकिन दीर्घावधि पूंजीगत लाभ (एलटीसीजी) कर को 10% से बढ़ाकर 12.5% करने और अल्पावधि पूंजीगत लाभ (एसटीसीजी) कर को 15% से बढ़ाकर 20% करने का प्रस्ताव उन लोगों को यकीनन प्रभावित करेगा, जो म्युचुअल फंड और शेयरों में निवेश करते हैं। इससे बड़ी संख्या में मध्यम वर्ग में निवेश के प्रति आकर्षण कम हो जाएगा और उनके संभावित लाभ घट जाएंगे।

अपनी संपत्ति बेचने वाले व्यक्तियों के लिए इंडेक्सेशन लाभ को हटाने से भी मध्यम वर्ग के उन लोगों को नुकसान होगा, जो अपना पैसा रियल एस्टेट में लगाते हैं। उलटे इसके परिणामस्वरूप संपत्तियों की बिक्री पर अधिक कर-योग्य लाभ होगा, जिससे मध्यम वर्ग के व्यक्तियों के लिए टैक्स लायबिलिटी बढ़ जाएगी।

रिटायरमेंट की प्लानिंग करने वाले या वित्तीय लाभ के लिए संपत्तियां बेचने वालों पर इसका खासा असर हो सकता है। अनुच्छेद 80डी के तहत कटौती की सीमा लगभग एक दशक से स्थिर बनी हुई है। मध्यम वर्ग के परिवार अक्सर अपने पैसों का प्रबंधन करने के लिए कर-कटौती पर निर्भर रहते हैं।

उन्हें स्वास्थ्य सेवा पर अधिक खर्च करना पड़ता है, क्योंकि जैसे-जैसे मेडिकल का खर्चा बढ़ता गया है, उस तरह से इस कटौती के लाभ नहीं बढ़े हैं। यह स्थिरता समय के साथ कटौती के वास्तविक मूल्य को कम करती है, जिससे मध्यम वर्ग पर अधिक वित्तीय बोझ पड़ता है।

इन तमाम प्रावधानों से मध्यम वर्ग के बीच असंतोष और वित्तीय-तनाव की भावना बढ़ने की संभावना है। उन्हें लग रहा है कि उनके महत्वपूर्ण योगदान और चुनौतियों को पर्याप्त महत्व नहीं दिया गया है। लोकसभा चुनावों में भाजपा को जो नुकसान हुआ, उसमें मध्यम वर्ग की बढ़ती नाराजगी विभिन्न कारणों में से एक है।

लोकनीति-सीएसडीएस द्वारा किए गए चुनाव-उपरांत सर्वेक्षण के आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग के मतदाताओं की भाजपा से दूरियां बढ़ी हैं। सर्वे के निष्कर्ष बताते हैं कि भाजपा के मध्यम वर्ग के मतदाताओं में 3 प्रतिशत की गिरावट आई है।

2019 में मध्यम वर्ग के 38% लोगों ने भाजपा को वोट दिया था, जो 2024 में घटकर 35% हो गया। हालांकि ये वोट कांग्रेस के खाते में नहीं गए हैं। 2024 में मध्यम वर्ग के 20% लोगों ने कांग्रेस को वोट दिया, जबकि 2019 में यह आंकड़ा 21% था। लेकिन 2024 में मध्यम वर्ग के 3 प्रतिशत अधिक मतदाता इंडिया गठबंधन के पाले में गए।

2019 में यूपीए को इस वर्ग के 29% ही वोट मिले थे। भाजपा को उच्च मध्यम वर्ग के मतदाताओं के बीच भी नुकसान उठाना पड़ा है। 2019 में इस वर्ग के 44% मतदाताओं ने उसे वोट दिया था, जो 2024 में घटकर 41% रह गए। इससे एनडीए का वोट-शेयर भी प्रभावित हुआ।

कांग्रेस को 2 प्रतिशत का लाभ हुआ। 2019 में 20% से बढ़कर 2024 में उसे इस वर्ग के 22% वोट मिले। लेकिन इंडिया गठबंधन को बहुत अधिक लाभ हुआ। 2019 में 27% वोटों की तुलना में 2024 में उसे 32% वोट मिले।

लोकनीति-सीएसडीएस सर्वेक्षण के निष्कर्ष यह भी बताते हैं कि भाजपा निचले तबके के मतदाताओं के बीच अपना समर्थन बनाए रखने में कामयाब रही है। 2019 में निम्न आय वर्ग के 35% मतदाताओं ने उसे वोट दिया था, जो 2024 में भी कायम रहा। लेकिन पिछले चुनाव की तुलना में इंडिया गठबंधन को निम्न आय वर्ग के मतदाताओं का 7% अधिक समर्थन मिला। 2019 में इस वर्ग के 28% मतदाताओं ने यूपीए को वोट दिया था, जो 2024 में इंडिया गठबंधन के लिए बढ़कर 35% हो गया।

निचले तबके के बीच भाजपा की लोकप्रियता में वृद्धि का श्रेय मुफ्त राशन और अन्य कल्याणकारी योजनाओं को जाता है। लेकिन मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग के बीच भाजपा के समर्थन-आधार में गिरावट स्पष्ट है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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