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एन. रघुरामन का कॉलम: बदलते मौसम में दिमाग का मिजाज भी बदलता है - सच्चा दोस्त न्यूज़

एन. रघुरामन का कॉलम: बदलते मौसम में दिमाग का मिजाज भी बदलता है

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19 घंटे पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

हमारी बिल्डिंग की बाहरी दीवारों पर हाल ही में रंग रोगन का काम शुरू हुआ और रहवासियों को कहा गया कि वे अपने गमले-पौधे बालकनी और ग्रिल से दूर करते हुए घर की दीवारों से सटा लें। जैसे ही काम शुरू हुआ, कुछ दिक्कत हो गई और इस बीच गमलों में रखे पौधों को वैसी पर्याप्त धूप नहीं मिली जैसे कि ग्रिल के पास मिलती थी। जगह बदलने का सीधा असर ये हुआ कि इन दो महीनों में फूल कम खिले और धूप पाने के लिए ये पौधे ऊपर की बजाय बाजू की तरफ बढ़ने लगे, जैसे कि ग्रिल से बाहर जाना चाहते हों।

अपने पौधों में ये बदला व्यवहार मुझे तब तक समझ नहीं आया जब तक कि मैंने इस महीने डॉ. बालामुरली बालाजी द्वारा संपादित जर्नल नहीं पढ़ा था। “द टेक्नो गांधियन न्यूज़’ नाम के इस जर्नल में उन्होंने अत्यधिक गर्मी में हर जीवित प्राणी (पौधों सहित) के व्यवहार पर एक लेख प्रकाशित किया है।

उन्होंने अपने बगीचे में लगे गुड़हल के पेड़ की तस्वीरों के साथ उसके व्यवहार का उदाहरण देते हुए कहा कि अमूमन इसकी पत्तियां सीधी होती हैं, जबकि तस्वीर में मुड़ी दिख रही हैं और नाव का आकार ले लिया है। उनके अनुसार ये बदलाव भीषण गर्मी से हुआ है।

आगे वो अपनी बात साबित करते हैं कि गुड़हल के उस पौधे ने शायद पत्तियों से पानी सोख लिया होगा, इसलिए पत्तियों ने नाव का आकार ले लिया, ताकि बारिश या पानी देते समय ये पानी होल्ड कर सकें। वह कहते हैं कि हीट वेव के दौरान पौधों सहित हर जीवित प्राणी में ऐसा अनुकूलन देखा जा सकता है।

उच्च तापमान सारे जीवित प्राणियों के दिमाग पर असर डालता है, इसलिए लोगों की याददाश्त में गिरावट, प्रतिक्रिया का समय व कार्यप्रणाली में भी गिरावट देखी जाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि मस्तिष्क का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत शरीर को शीतल बनाने में लग जाता है और बाकी चीजों के लिए कम ऊर्जा बचती है। इसे एनर्जी या ग्लूकोज कह सकते हैं।

शरीर के तापमान को काबू में रखने के लिए शरीर इसे मस्तिष्क के पास भेज देता है। इसलिए दिमाग के बाकी संज्ञानात्मक काम जैसे ज्ञान हासिल करना, सूचनाओं का आदान-प्रदान या तार्किकता के लिए ऊर्जा नहीं बचती। संज्ञानात्मक कामों में धारणा, स्मृति, सीखना, ध्यान, निर्णय लेने व भाषागत क्षमताएं शामिल हैं, जो मानसिक प्रक्रियाओं का हिस्सा हैं।

ठीक आठ साल पहले साल 2016 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता जोस गुइर्लेमो लॉरेंट ने 44 विद्यार्थियों के संज्ञानात्मक प्रदर्शन पर शोध किया था, जब तापमान 33 डिग्री सेल्सियस छू गया था। उन्होंने पाया था कि बिना वातानुकूलित छात्रावास में जहां रात का तापमान औसतन 26 डिग्री के आसपास रहता था, वहां के छात्रों ने 21 डिग्री तापमान में रहने वाले छात्रों की तुलना में खराब प्रदर्शन किया। कई अध्ययनों से साबित हुआ है कि चार डिग्री की वृद्धि से स्मृति परीक्षण व प्रतिक्रिया समय में 10% की गिरावट आई है।

चलिए, अब अपने स्कूल के दिनों की ओर लौटते हैं। गर्मियों की छुट्टी का मतलब सिर्फ खेलना, रात में कहानियां सुनना, गर्मी में आठ घंटे खेलने के बाद आठ घंटे घोड़े बेचकर सोना। उन दिनों कोई प्रतियोगी परीक्षा नहीं थी, समाज में चूहे-बिल्ली की दौड़ नहीं थी।

शेल्फ पर रखी मेरी किताबों पर धूल जम जाती थी और पिताजी उन दो महीनों में लिखाई-पढ़ाई की कोई बात नहीं करते थे। यही एक कारण है कि हमें नाना-नानी के यहां लाड़-प्यार के लिए भेजा जाता था। अब एक बार पुनर्विचार करें। जब गर्मियां शबाब पर हों तो क्या अपने बच्चों से तभी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने की उम्मीद करना सही है?

फंडा यह है कि कम से कम गर्मियों में जब दिमाग शरीर को ठंडा रखने में व्यस्त रहता है तो आपको कर्मचारियों व बच्चों से परफेक्ट कॉग्निटिव फंक्शन की उम्मीद नहीं करना चाहिए।

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