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- Column By Pt. Vijayshankar Mehta The True Meaning Of Marriage Is To Live For Others
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पं. विजयशंकर मेहता
शादी करूं या न करूं? पहले ये सवाल युवावस्था में बहुत से लोग अपने आसपास वालों से पूछते थे। अब शादी को लेकर सवाल भी बदल गए और बहुत सारे भ्रम पैदा हो गए। पहले ऐसा कहते थे कि विवाह के पश्चात नवयुगल परिवारों के बड़े-बूढ़ों के साथ भी कुछ समय गुजारें। ये बहुत गहरा दर्शन था।
बड़े-बूढ़ों की संगत का वैवाहिक जीवन में सकारात्मक असर पड़ता है। अब आज व्यवस्थाएं ऐसी हैं कि शादी हुई और तुरंत अलग-अलग रहते हैं। विवाह के पश्चात हम बहुत कुछ पाते हैं तो बहुत कुछ खो भी देते हैं। फिर शादियों में पैसा बचाना तो दूर अब तो पैसा बहाने की प्रतिस्पर्धा चली है।
पहले विवाह में माता-पिता इस तरह खर्च करते थे कि कुछ पैसा बचे और बाद में बेटे-बेटी के काम आए। अब तो रिश्ता शादी के बाद बच जाए, यही सबसे बड़ी दौलत है। भगवान शंकर विवाह नहीं करना चाहते थे, तब श्रीराम ने उनको समझाया कि विवाह मनुष्य अपने लिए नहीं करता। विवाह का मतलब ही है दूसरों के लिए जीना। इसलिए विवाह की दिव्यता को समझें, मतलब सबके लिए मिलकर जीना।
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