[ad_1]
- कॉपी लिंक
आदित्य विक्रम जैन रिसर्च एनालिस्ट, सीईईडब्ल्यू
देश में गर्मियों के दौरान चली भीषण हीटवेव ने खूब सुर्खियां बटोरीं, लेकिन अब मानसून भी पीछे नहीं है। मौसम विभाग ने इस साल औसत से अधिक मानसूनी बारिश होने का पूर्वानुमान जताया है। इसके संकेत भी दिखाई देने लगे हैं। पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों में अचानक बाढ़ आ गई तो बेंगलुरु ने 2 जून 2024 को 133 वर्षों में एक दिन में होने वाली सर्वाधिक बारिश का सामना किया।
देश में मानसून दिनों-दिन अनिश्चित होता जा रहा है, जिससे कम समय में तेज बारिश के मामले सामने आ रहे हैं। इसका सीधा नतीजा बाढ़, जान-माल और आजीविका के साथ-साथ बुनियादी ढांचे के नुकसान के रूप में सामने आता है।
काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) के एक विश्लेषण के अनुसार 38% भारतीय जिलों में पिछले 40 वर्षों की तुलना में बीते एक दशक में अत्यधिक बारिश हुई। इसके अलावा, हर साल बाढ़ से भारत को लगभग 5,650 करोड़ रुपए का नुकसान होता है।
अभी कई शहरों ने बाढ़ झेली है, जिनमें हैदराबाद, चेन्नई, दिल्ली, बेंगलुरु और अहमदाबाद शामिल हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण जहां बारिश ने विकराल रूप लिया है, तो हमारे शहरों की खराब प्लानिंग भी बाढ़ का एक प्रमुख कारण है।
महाराष्ट्र के तटीय शहर ठाणे को हम बतौर उदाहरण देख सकते हैं। यहां पर सीईईडब्ल्यू ने पिछले 52 वर्षों में हुई बारिश का अध्ययन किया। इसमें पाया कि यहां की मौजूदा प्रणाली अत्यधिक वर्षा जल संभालने के लिए नाकाफी है, जबकि हर दूसरे वर्ष ऐसी बारिश की संभावना है।
कमोबेश यही हाल दूसरे शहरों के भी हैं। शहरी बाढ़ के बढ़ते मामले और जल निकासी की अपर्याप्त व्यवस्था, बाढ़ प्रबंधन के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की जरूरत बताती है, ताकि नुकसान को कम से कम किया जा सके। बाढ़ से बचने के लिए हमें चार-आयामी दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।
सबसे पहले शहरी स्तर पर एक फ्लड एक्शन प्लान बनाना चाहिए, जो वार्ड स्तर पर जल-विज्ञान, प्रशासन, सामाजिक और आर्थिक कारकों की पहचान करे। इसमें बाढ़ से प्रभावित प्रमुख इलाके चिह्नित करें और बाढ़ से निपटने की तैयारी व प्रबंधन की रणनीतियां भी हों। दूसरा, मौसम आधारित रणनीति बनाई जाएं।
विश्लेषण से पता चलता है कि 57% जिलों में बाढ़ की आशंका है। इससे निपटने के लिए मौसम-दर-मौसम रणनीति बनाना जरूरी है। मानसून से पहले तैयारियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। जैसे जल निकासी के मौजूदा बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाना, सटीक दीर्घकालिक स्थानीय पूर्वानुमानों के लिए मौसम केंद्र स्थापित करना। वहीं, मानसून और उसके बाद राहत रणनीतियों पर भी ध्यान देना चाहिए।
तीसरा, शहरों के लिए एक जल-संवेदनशील शहरी डिजाइन का डेटा होना चाहिए। इसे भू-स्थानिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) का गाइडेंस मिलना चाहिए। इसमें लैंड यूज से जुड़े बदलाव, ड्रेनेज, सीवर नेटवर्क की जानकारी होना चाहिए। इसी दृष्टिकोण के साथ एशियाई विकास बैंक की मदद से चेन्नई-कोसस्थलैयर बेसिन के लिए 2021 में चेन्नई एकीकृत शहरी बाढ़ प्रबंधन रणनीति लागू की गई थी।
चौथा, सरकारों को ‘फ्लड रिस्क मैनेजमेंट’ की योजना बनाने के लिए सुव्यवस्थित निगरानी के साथ, स्थितियों का आकलन, इनसे मिली सीख व ज्ञान को साझा करने वाला तंत्र विकसित करना चाहिए। दुबई में हुई सीओपी28 की बैठक में ये मुद्दे रखे गए थे।
हम दुनिया के बाकी हिस्सों से भी प्रेरणा ले सकते हैं। उदाहरण के लिए बैंकॉक के बाढ़ नियंत्रण केंद्र को देखें, जिसमें एक समर्पित सेल बनी है जो आंकड़ों के आधार पर फैसले लेती है। मौसम के बदलते मिजाज को देखते हुए हमें तैयारियों पर ध्यान देना होगा।
(इस लेख के सहलेखक कार्तिकेय चतुर्वेदी हैं। ये लेखकों के अपने विचार हैं)
[ad_2]
Source link
Discover more from सच्चा दोस्त न्यूज़
Subscribe to get the latest posts sent to your email.