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भारत में घटी है गरीबी
हाल ही में आई NCAER की रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी घट रही है. जनसंख्या अनुपात 2011-12 में poverty rate 24.8% से घटकर अब 8.6% हो गया है. देखा जाए तो घरेलू खर्च पर NSSO सर्वेक्षण पर आधारित SBI की रिपोर्ट से ये थोड़े अलग आंकड़े हैं जिसमे ग्रामीण गरीबी 7.2% थी और शहरी गरीबी 4.6%. रिपोर्ट में मूल रूप से कहा गया है कि हमें गरीबी कम करने और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए अपने सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों में बदलाव करने की आवश्यकता है. भारत मानव विकास सर्वेक्षण के अनुसार, 2004-05 से 2011-12 तक गरीबी में काफी बड़ी गिरावट आई है, अनेक समस्याओं के बाद भी 2011-12 से 2022-24 तक गरीबी दरों में और भी अधिक कमी आई है.
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नए तरीके करने होंगे डेवलप
रिपोर्ट में बताया गया है कि जैसे-जैसे भारत की अर्थव्यवस्था बढ़ती जा रही है और poverty घटती जा रही है, पर यह संभव है कि अत्यधिक गरीबी को दूर करने के सामान्य तरीके अब उतने कारगर न हों. बदलते समाज के अनुरूप सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों को समायोजित करना और उचित विकास सुनिश्चित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है. इसलिए, सरकार को एक नई योजना के साथ आना होगा. आर्थिक विस्तार के समय अवसरों में वृद्धि होती है और गरीबी में संभावित कमी आती है.
आगे बढ़ते रहना है
विशेषज्ञों के अनुसार, भारत का सार्वजनिक ऋण उसके सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 82% है, लेकिन देश की मजबूत वृद्धि और अधिकांश ऋण भारतीय मुद्रा में होने के कारण यह वास्तव में कोई समस्या पैदा नहीं कर रहा है. उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि कुल ऋण का लगभग एक तिहाई हिस्सा राज्यों के पास है, और अगले पाँच वर्षों में इसके बढ़ने की उम्मीद है. 2011-12 और 2022-24 के भारत मानव विकास सर्वेक्षण (IHDS) के डेटा से पता चलता है कि 8.5% आबादी गरीबी में रह रही है, जिसमें 3.2% poverty line के नीचे पैदा हुए हैं और 5.3% जीवन में बाद में गरीबी में गिर गए हैं.
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