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कैसे काम करता है यह सॉफ्टवेयर
जिन लोगों को पहले से डायबिटीज है, उन्हें आसपास के लोकल लेवल हेल्थकेयर सेंटर पर जाना होगा. इसके बाद आपकी जांच रिपोर्ट जैसे कि ब्लड प्रेशर, शुगर लेवल, कोलेस्ट्रॉल आदि की माप को उस सॉफ्टवेयर में फीड कर देगी. इसके अलावा आपसे कुछ और जानकारी लेकर सॉफ्टवेयर में फीड करेगी. फिर वह सॉफ्टवेयर कुछ ही सेकेंड में दवा की पर्ची आपको दे देगा जिसमें आपको कितनी दवा कितनी बार खानी है, यह लिखी होगी. एम्स इस सॉफ्टवेयर को पिछले 10 साल से इस्तेमाल कर रहा है. अध्ययन के तौर पर अब तक एम्स ने 1100 लोगों का इलाज किया है. इस सॉफ्टवेयर की प्रभावकारिता बहुत अधिक रही है, इसलिए अब इसे पूरे देश में लागू करने की योजना है. एम्स के एंडोक्रिनोलॉजी डिपार्टमेंट के प्रमुख डॉ. निखिल टंडन ने कहा कि सेंटर फार कार्डियोवैस्कुलर रिस्क रिडक्शन इन साउथ एशिया (सीएआरआरएस) के तहत टाइप टू डायबिटीज के मरीजों को शामिल कर 10 वर्षों तक अध्ययन किया गया. उन्होंने कहा कि इस सॉफ्टवेयर को कंप्यूटर चलाने वाला कोई भी व्यक्ति ऑपरेट कर सकता है. वर्तमान में पंजाब में नर्स के जरिये ऐसे सीडीएसएस का संचालन किया जा रहा है.
डायबिटीज की वजह से अन्य जोखिम कम होगा
एम्स में डिपार्टमेंट ऑफ एंडोक्रायनोलॉजी एंड मेटाबोलिज्म के फ्रमुख डॉ. निखिल टंडन ने बतााय कि यह स्टडी कम और मध्यम आय वाले देशों जैसे कि भारत और पाकिस्तान में चल रही है. यह सॉफ्टवेयर डायबिटीज, ब्लड प्रेशर और हाई कोलेस्ट्रॉल का इलाज करने में सक्षम है. इस सॉफ्टवेयर की मदद से हम डायबिटीज के कारण किडनी, आंखें और नर्वस सिस्टम की जो बीमारियां होती हैं, उन जोखिमों को कम करने में सक्षम होंगे. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिल रिसर्च की स्टडी के मुताबिक देश में 10.01 करोड़ लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं. इन सबके लिए यह टूल बेहद कारगर साबित हो सकता है. रिसर्च करने वाली टीम ने सुझाव दिया है कि इस प्रोग्राम को पूरे देश में चलाया जाए इसके डाटा को इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड के रूप में सहेज कर रखा जाए. डॉ. टंडन ने बताया कि शुरुआत में हमने ढाई साल तक डायबिटीज के साथ-साथ हाई ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल के मरीजों को भी देखा और उन्हें इसी तरह से इलाज किया. इस सॉफ्टवेयर की मदद से हम इन लोगों में इन बीमारियों के कारण अन्य रिस्क को 200 प्रतिशत तक कंट्रोल करने में सक्षम हो सके हैं. डॉ. टंडन ने कहा कि डायबिटीज को लेकर की गई इस पहल के कारण डायबिटीज के मरीजों में 30 प्रतिशत की कमी आई है.
कहां-कहां किया गया अध्ययन
यह अध्ययन 2011 जनवरी में शुरू हुआ और सितंबर 2019 में पूरा हुआ. अध्ययन में दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, चेन्नई, गोवा समेत 10 शहरों के मरीजों को शामिल किया गया. इनमें से आधे अपने पुराने तरीके से इलाज पर थे और आधे को इस तकनीक के जरिये उपचार दिया गया. साढ़े छह साल तक इनका फालोअप किया गया जिसमें पाया गया कि मरीज का शुगर का स्तर, ब्लड प्रेशर और एलडीएल कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण में रहा. केंद्र सरकार के राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम में इसे शामिल कर लिया गया है और भविष्य में इसे राज्यों में लागू करने में हर प्रकार की मदद की जाएगी.
Tags: Health, Health tips, Lifestyle
FIRST PUBLISHED : August 1, 2024, 16:55 IST
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