
भारत में बेरोजगारी कोई नया विषय नहीं है। यह वर्षों से चर्चा का केंद्र बना हुआ है और राजनीतिक दलों द्वारा सत्ता परिवर्तन के लिए एक मुद्दे के रूप में उपयोग किया जाता रहा है। लेकिन असल सवाल यह है कि **क्या वास्तव में देश में बेरोजगारी चरम पर है, या फिर समस्या किसी और चीज़ में है?**
यदि हम गहराई से इस विषय पर विचार करें, तो पाएंगे कि बेरोजगारी से अधिक **काम करने की इच्छा, परिश्रम की भावना और अपने कौशल को निखारने की ललक की कमी एक बड़ी समस्या बन चुकी है।** मैंने विभिन्न क्षेत्रों में इस विषय पर शोध किया है और अपने अनुभवों के आधार पर कुछ महत्वपूर्ण बिंदु प्रस्तुत कर रहा हूँ।
**1. असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की मानसिकता**
हमारे देश का एक बड़ा हिस्सा असंगठित क्षेत्र में काम करता है, जिसमें दिहाड़ी मजदूर भी शामिल हैं। पहले के समय में मजदूर काम की तलाश में भटकते थे, लेकिन आज उन्हें काम मिलने के बावजूद वे उचित मेहनताना मांगने के साथ-साथ काम के प्रति ईमानदारी भी नहीं दिखाते।
कई बार वे अधूरा काम छोड़ देते हैं, ताकि उन्हें अगले दिन भी उसी काम के लिए बुलाया जाए। यह मानसिकता न केवल उनकी उत्पादकता को प्रभावित कर रही है, बल्कि देश की आर्थिक प्रगति में भी बाधा बन रही है।
**2. अर्धशिक्षित कर्मचारियों का रवैया**
छोटे एवं मध्यम संस्थानों में कार्यरत वेतनभोगी कर्मचारी, जो ₹5,000 से ₹15,000 प्रतिमाह कमाते हैं, आमतौर पर उतना ही काम करते हैं जितना उन्हें स्पष्ट रूप से बताया जाता है।
उनमें अपने कार्यक्षेत्र में बेहतर करने की कोई विशेष इच्छा नहीं होती। वे अपने कार्यस्थल पर अधिक समय मोबाइल और सोशल मीडिया में बिताते हैं, जबकि उन्हें यह समझना चाहिए कि यदि वे मेहनत करेंगे, तो न केवल संस्थान का विकास होगा, बल्कि उनका वेतन भी बढ़ सकता है।
**3. शिक्षित युवाओं की सोच और बेरोजगारी का भ्रम**
आज का शिक्षित युवा वर्ग नौकरी करने के बजाय **अपने “कम्फर्ट ज़ोन” में रहना अधिक पसंद करता है।** वे कठिन परिश्रम करने और लक्ष्य-आधारित कार्य करने से कतराते हैं।
• उन्हें यह लगता है कि नौकरी में समय फिक्स होना चाहिए और चाहे वे मेहनत करें या न करें, वेतन तो मिलेगा ही।
• सरकारी नौकरियों की ओर आकर्षण इसी सोच से जुड़ा हुआ है, क्योंकि उनमें कार्य प्रदर्शन को लेकर सख्ती कम होती है।
• निजी कंपनियों में मेहनत की अपेक्षा और प्रदर्शन आधारित वेतन की वजह से वे वहां कार्य करने से बचते हैं।
**4. लक्ष्य-आधारित नौकरियों से बचने की प्रवृत्ति**
आज लगभग हर निजी क्षेत्र की कंपनी **बिक्री (Sales) और लक्ष्य-आधारित कार्य** के लिए नौकरियाँ उपलब्ध करा रही है। लेकिन युवा वर्ग का बड़ा हिस्सा ऐसे कार्यों से बचने का प्रयास करता है।
वे ऐसी नौकरी चाहते हैं, जिसमें कोई लक्ष्य न हो और उन्हें बिना किसी दबाव के वेतन मिलता रहे। जबकि आज के प्रतिस्पर्धात्मक युग में यह संभव नहीं है। हर क्षेत्र में दक्षता और उत्पादकता महत्वपूर्ण हो गई है।
**5. क्या वास्तव में नौकरियाँ नहीं हैं?**
आज भारत में बड़ी संख्या में **नए स्टार्टअप, उद्योग और संगठन** विकसित हो रहे हैं। बड़ी-बड़ी कंपनियाँ हजारों नौकरियाँ देने के लिए तैयार हैं, लेकिन वे ऐसे लोगों को नियुक्त करना चाहती हैं जो **ईमानदारी से काम करें, मेहनत करें और संस्थान के विकास में योगदान दें।**
मैंने अपनी कंपनी में पिछले छह महीनों में **लगभग 3,000 से 4,000 युवाओं के इंटरव्यू लिए**, लेकिन उनमें से अधिकांश लोगों ने यह कहकर नौकरी छोड़ दी कि वे **लक्ष्य-आधारित कार्य नहीं कर सकते।**
**6. आत्मविश्वास की कमी – असली समस्या**
आज देश में **बेरोजगारी से अधिक आत्मविश्वास की कमी एक गंभीर समस्या बन चुकी है।**
जब तक युवा खुद पर भरोसा नहीं करेंगे और चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार नहीं होंगे, तब तक देश का विकास भी संभव नहीं होगा।
**7. सफलता की मिसालें**
हमारे देश में कई ऐसे प्रेरणादायक व्यक्तित्व हैं जिन्होंने कठिनाइयों को पार कर अपनी सफलता की कहानी लिखी है।
• **नरेंद्र मोदी** – चाय बेचने से लेकर प्रधानमंत्री बनने तक का सफर उन्होंने अपने आत्मविश्वास और परिश्रम से तय किया।
• **रतन टाटा** – विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने टाटा समूह को वैश्विक स्तर पर स्थापित किया।
• **राहुल गांधी** – जिन्हें कभी राजनीति में हल्के में लिया जाता था, लेकिन आज वे विपक्ष के एक मजबूत नेता के रूप में उभरे हैं।
**निष्कर्ष**
मेरा आप सभी युवाओं से विनम्र निवेदन है कि **आप ही इस देश का भविष्य हैं।** यदि आज आप अपने कम्फर्ट ज़ोन से बाहर नहीं आएंगे, तो आने वाली पीढ़ी को रतन टाटा, अंबानी, अडानी और अन्य महान व्यक्तित्व कैसे मिलेंगे?
इसलिए **आज ही खुद से एक संकल्प लें** कि –
✅ हम लक्ष्य-आधारित कार्य से नहीं डरेंगे।
✅ हम आत्मविश्वास बढ़ाएंगे और मेहनत से पीछे नहीं हटेंगे।
✅ हम अपने कौशल में सुधार करेंगे और अपनी काबिलियत साबित करेंगे।
क्योंकि जब तक हम स्वयं को बदलने का प्रयास नहीं करेंगे, तब तक देश का विकास संभव नहीं होगा।
**आपका साथी,**
**विनायक अशोक लुनिया**
**सम्पादक – सच दोस्त न्यूज़**
**डायरेक्टर – लुनिया विनायक ग्रुप ऑफ कंपनीज़**