PCOD और PCOS: किशोरियों और महिलाओं के स्वास्थ्य पर मंडराता खतरा, समाधान है ‘प्राकृतिक चिकित्सा’

 

– रिपोर्ट: जैन विनायक अशोक लुनिया


📍 भारत में तेजी से बढ़ रही महिला स्वास्थ्य संबंधी एक गंभीर समस्या

वर्तमान समय में युवतियों और महिलाओं में PCOD (Polycystic Ovarian Disease) और PCOS (Polycystic Ovarian Syndrome) जैसी जटिल बीमारियाँ अत्यंत तेजी से फैल रही हैं। जहां एक ओर यह हार्मोनल असंतुलन से जुड़ी समस्याएं हैं, वहीं दूसरी ओर यह समाज में जागरूकता की कमी और गलत जीवनशैली की उपज भी हैं। आंकड़े बताते हैं कि हर 5 में से 1 महिला इस बीमारी से प्रभावित है, और कई मामलों में यह किशोरावस्था में ही शुरू हो जाती है।


🧬 PCOD और PCOS क्या हैं?

बीमारी विवरण
PCOD (पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिज़ीज) यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब अंडाशय में छोटे-छोटे सिस्ट बन जाते हैं, जिससे पीरियड्स अनियमित हो जाते हैं, वज़न बढ़ता है और चेहरे पर मुंहासे निकलते हैं।
PCOS (पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम) यह एक जटिल हार्मोनल विकार है जिसमें PCOD के लक्षणों के साथ-साथ हार्मोन असंतुलन, इंसुलिन रेसिस्टेंस और थायरॉइड संबंधी समस्याएं शामिल होती हैं।

क्या यह रोग जानलेवा हैं?

ये बीमारियाँ सीधे तौर पर जानलेवा नहीं हैं, लेकिन समय पर इलाज न होने पर ये भविष्य में गंभीर समस्याएं उत्पन्न कर सकती हैं:

  • बांझपन (Infertility)
  • डायबिटीज़ और मोटापा
  • हृदय रोगों का खतरा
  • मानसिक तनाव और अवसाद
  • प्रेग्नेंसी के दौरान जटिलताएं

🕒 समय रहते पहचान और रोकथाम क्यों जरूरी है?

PCOD और PCOS को समय रहते पहचानना, जीवनशैली में सुधार लाना और वैकल्पिक चिकित्सा के उपाय अपनाना इसे नियंत्रित करने की कुंजी है। आज भी कई लड़कियां इन समस्याओं को सामान्य मानकर नजरअंदाज कर देती हैं, जिससे स्थिति और बिगड़ जाती है।


🌿 नैचुरोपैथी और न्यूरोपैथी से उपचार – एक आशाजनक विकल्प

✅ प्राकृतिक चिकित्सा के प्रमुख उपाय:

विधि लाभ
न्यूरोपैथी (Neurotherapy) नसों और ग्रंथियों पर दबाव तकनीक से शरीर के हार्मोन संतुलन को पुनर्स्थापित किया जाता है, जिससे पीरियड्स नियमित होते हैं।
नैचुरोपैथी (Naturopathy) शरीर की स्व-चिकित्सा प्रणाली को सक्रिय करने में मदद करता है – जैसे फास्टिंग, हर्बल मेडिसिन, मिट्टी स्नान, और सूर्यस्नान।
योग और प्राणायाम भुजंगासन, अनुलोम-विलोम, बद्धकोणासन – यह सभी गर्भाशय और अंडाशय को टोन करते हैं और मानसिक तनाव कम करते हैं।
आहार सुधार रिफाइंड चीनी, मैदा, प्रोसेस्ड फूड से परहेज कर फाइबर युक्त और आयरन, B-विटामिन युक्त भोजन लेना चाहिए।
तनाव प्रबंधन ध्यान, सकारात्मक सोच और पर्याप्त नींद अत्यंत जरूरी है। तनाव हार्मोनल असंतुलन को बढ़ाता है।

🧒 किशोरियों को समय रहते जागरूक बनाना क्यों जरूरी है?

  • 13 से 19 वर्ष की आयु में हार्मोनल परिवर्तन तेजी से होते हैं।
  • इस उम्र में PCOD के लक्षण दिखने पर स्कूल-कॉलेज स्तर पर काउंसलिंग जरूरी है।
  • माताओं और शिक्षकों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है – वे किशोरियों में जीवनशैली सुधार की शुरुआत करवा सकती हैं।

📢 निष्कर्ष: बीमारी नहीं, यह जीवनशैली का संकेत है

👉 PCOD और PCOS कोई ऐसी लाइलाज बीमारी नहीं हैं जिससे डरना पड़े।
👉 समय रहते पहचान, नियमित योग, संतुलित आहार और वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों से यह रोग पूरी तरह से नियंत्रित किया जा सकता है।
👉 हमें यह समझने की जरूरत है कि यह समस्या शरीर की चेतावनी है, कि कुछ तो है जो बदलना होगा।


🗣️ जन-जागरूकता ही सबसे बड़ा इलाज है

समाज में खुलकर बात करना, स्कूलों-कॉलेजों में जागरूकता कार्यक्रम चलाना और प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों को बढ़ावा देना आज की आवश्यकता है। यदि हम आज प्रयास करेंगे, तो आने वाली पीढ़ियां स्वस्थ, सशक्त और आत्मविश्वास से भरपूर होंगी।


✍🏻 लेखक: जैन विनायक अशोक लुनिया


 


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