
तीर्थंकर परमात्मा के दिखाए मार्ग पर चल कर मुक्ति पाने को देवता भी लालायित रहते हैं पर इसके लिए उन्हें भी मनुष्य जन्म की आवश्यकता : जैनाचार्य श्रीपूज्य श्रीजिनचन्द्रसूरिजी
उज्जैन। शांतिनाथ आराधना भवन में विगत दिनों से चल रहे आत्म उत्थान प्रेरक प्रवचन श्रृंखला के अन्तर्गत भक्तामर स्तोत्र स्वाध्याय को आज पूर्णता देते हुए गुरुदेव श्रीपूज्यजी श्रीजिनचन्द्र सूरिजी मसा ने श्रावकों से प्रश्नोत्तरी करते हुए संबोधित किया कि जीव की चार गतियों नरक, तिय़ंर्च, मनुष्य और देव गति में जिसे श्रेष्ठ माना जाता है, देव गति के जीवों में जिनको भान हो जाता है वे तो देवाधिदेव तीर्थंकर परमात्मा की शरण में इसलिए अपना स्थान बनाते हैं कि जल्दी से जल्दी उन्हें भी मनुष्य जन्म मिले और वे परमात्मा के दिखाए मार्ग पर चलते हुए जन्म, मरण के भव चक्र से मुक्त हो जाएं। ऐसे देव उन मनुष्यों की जो परमात्म पथ पर अग्रसर है, स्वयमेव सहाय करते हैं। देवों से सांसारिक इच्छापूर्ति की अपेक्षा से पूजा अर्चना करना दोषपूर्ण हो जाता है क्योंकि जब सब कुछ कर्म के अधीन है जो आपके कर्म का उदय होगा, उसका परिणाम आ रहा है तो फिर परमात्मा की आज्ञा के अनुसार अपने वर्तमान क्षण के मन, वचन, काया के कर्म के प्रति होशवान, सजग और समता में रहते हुए जीना संयम का रास्ता है। मन का कर्मों के बंधनों को बनाने का स्वभाव शिकंजा जो बन गया है। साधना में वर्तमान के श्वांस, सेंसेशन के प्रति समता से पूर्ण सजग रहने का निरंतर प्रयास कर्म के संवर और निर्जरा की आंतरिक अवस्था निर्मित करता है। ऐसा सत्य साधना ध्यान के रास्ते पर चलने के लिए मिला है यह अनमोल मानव तन, देवों के पास जो वैक्रिय शरीर है उससे यह साधना, संयम संभव नहीं है। आज तक ऐसा कोई दृष्टांत कहीं उपस्थित नहीं है कि किसी देव द्वारा संयम पथ अंगीकार किया गया हो। यह सौभाग्य पाकर मनुष्य जीव देव गति से भी श्रेष्ठ हो गया है। ऐसा ही संयम समागम का शंखनाद गुरुवार को हो रहा है। यति-यतिनियों के दीक्षा महोत्सव निमित्त स्नात्र महोत्सव, दादा गुरुदेव बड़ी पूजा प्रात: 8.30 बजे से शांतिनाथ आराधना भवन में सौल्लास होगी। संध्या में मनोरमा गार्डन में प्रेरणास्पद रोचक नाट्य प्रस्तुति चमत्कार क्यों? दीक्षा क्यों? का मंचन डॉ. श्रेयांस जैन के संयोजन में उज्जैन के महिला एवं बाल मंडल द्वारा होगा। वर्ष प्रतिपदा पर भक्तामर स्तोत्र एवं इसी समान दादा गुरु इकतीसा का सामूहिक पाठ सभी श्रावक-श्राविकाओं ने गुरुदेव के साथ किया। गुरुदेव द्वारा मांगलिक प्रदान की गई। आज जिनालय दर्शन के क्रम में गुरुदेव का श्री ऋषभदेव मंदिर खाराकुआं पदार्पण हुआ। साथ जीवनदीप संस्थान के पदाधिकारियों की विनती पर गुरुवर ने सेवा केन्द्र का अवलोकन किया। सेवा कार्य के सद्कर्म में जुड़े सभी सद्भावियों को आशीर्वचन प्रदान किए। संस्थान की ओर से अशोक कोठारी, प्रदीप पीपाड़ा, मनीष, राजेन्द्र, विजय आदि ने भावभीनी वंदना करते हुए कामली अर्पण की।