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03 जुलाई 2024, अजमेर: बीजोपचार से दलहनी फसलों का उत्पादन होगा दोगुना – बीजोपचार के माध्यम से दलहनी फसलों का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। अजमेर क्षेत्र में खरीफ में उगाई जाने वाली प्रमुख दलहनी फसलें मूंग, मोठ, उड़द एवं चवला हैं। ये फसलें अपनी जड़ों से जीवाणुओं के माध्यम से वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर करके मृदा की उर्वरता बढ़ाती हैं। कृषि जलवायु क्षेत्र 3ए के उपनिदेशक कृषि (फसलें) श्री मनोज कुमार शर्मा ने किसानों को इन फसलों को रोगों से बचाने के लिए रोग प्रतिरोधी किस्मों के उपयोग के साथ-साथ विभागीय अनुशंसा के अनुसार बीजोपचार करने की सलाह दी है।
उप निदेशक कृषि (कीट) डॉ. के.जी.छीपा ने बीजोपचार के महत्व पर बल देते हुए कहा कि किसान बीजों को फफूंदनाशक व कीटनाशक से उपचारित करने के बाद ही राइजोबियम जीवाणु कल्चर से उपचारित करें। बीजोपचार करते समय सुरक्षा उपायों का पालन अनिवार्य है। सभी दलहनी फसलों के बीजों को बुवाई से पूर्व राइजोबियम कल्चर से उपचारित करने से पैदावार में वृद्धि होती है। इस प्रक्रिया के लिए गुड़ और राइजोबियम जीवाणु कल्चर का उपयोग किया जाता है।
चंवला की फसल को जड़ गलन रोग और चारकोल रॉट-गलन रोग से बचाव के लिए बुवाई से पूर्व ट्राईकोडर्मा का उपयोग करने की सलाह दी गई है।
इसी प्रकार, उड़द की फसल को पीत चितेरी रोग से बचाने के लिए पन्त यू 31 किस्म का प्रयोग करें। मूंग की फसल को पीला मोजेक रोग से बचाने के लिए एसएमएल 668, आईपीएम 2-3, आरएमजी 975 और एमएसजे 118 किस्मों का उपयोग करें।
मूंग की फसल में कीटों के नियंत्रण के लिए 5 ग्राम थायोमेथोक्जाम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर बुवाई की सलाह दी गई है। मोठ की फसल में जीवाणुज पत्त्ती धब्बा रोग के नियंत्रण के लिए स्ट्रप्टोसाइक्लीन और केप्टान का उपयोग करें।
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