भ्रष्टाचार की जड़: कर्मचारी, मंत्री और थर्ड पार्टी की मिलीभगत

आओ सत्य निष्ठा व ईमानदारी से अपने पद की जवाबदेही निभाने की शपथ लें

गोंदिया, महाराष्ट्र – भ्रष्टाचार और मिलीभगत के मुद्दे सदियों से हमारे समाज और प्रशासनिक व्यवस्था को खोखला करते आ रहे हैं। वैश्विक स्तर पर भ्रष्टाचार एक पुरानी समस्या है, लेकिन भारत में यह अंग्रेजों के शासनकाल से ही जड़ें जमाए हुए है। आज के दौर में इस समस्या में मिलीभगत और सांठगांठ जैसे नए पहलू भी जुड़े हैं।

कई घटनाएं, जैसे पुल गिरने से लेकर भयानक हादसे, टीवी चैनलों पर सुर्खियां बनती हैं। इन मामलों में अक्सर मिलीभगत और भ्रष्टाचार के आरोप सामने आते हैं। हाल ही में श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के बेटे योशिता राजपक्षे को भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किया गया। यह घटना स्पष्ट करती है कि मिलीभगत किस तरह शासन और जनता के बीच विश्वास को खंडित करती है।

मिलीभगत: शासन में भ्रष्टाचार का मूल कारण

शासकीय कार्यालयों में भ्रष्टाचार और मिलीभगत की जड़ें गहरी हैं। कई बार आम नागरिकों को कार्यालयों में बाबू से लेकर उच्च अधिकारियों तक के चक्कर काटने पड़ते हैं। यदि वही काम किसी बिचौलिए या दलाल के जरिए करवाया जाए, तो सब कुछ सुगमता से हो जाता है। यह स्थिति दर्शाती है कि नीचे से ऊपर तक भ्रष्टाचार की एक संगठित चेन काम करती है।

सत्यनिष्ठा की शपथ और वास्तविकता

हर वर्ष सरकारी विभागों में जागरूकता सप्ताह के दौरान कर्मचारियों को सत्यनिष्ठा और ईमानदारी की शपथ दिलाई जाती है। लेकिन यदि इस शपथ का पालन किया जाए, तो मिलीभगत जैसी समस्याएं स्वतः समाप्त हो जाएंगी। इसके लिए हर स्तर पर अधिकारी, कर्मचारी और मंत्री को सत्यनिष्ठा और पारदर्शिता से काम करने की आवश्यकता है।

भ्रष्टाचार, मिलीभगत और धोखाधड़ी का कनेक्शन

  1. रिश्वतखोरी: यह भ्रष्टाचार का सबसे आम रूप है। निर्णयों को प्रभावित करने के लिए रिश्वत दी जाती है, चाहे वह नकदी के रूप में हो, उपहार, मनोरंजन या अन्य लाभ के रूप में।
  2. टेंडर प्रक्रिया में हेरफेर: ठेके देने में मिलीभगत अक्सर गुणवत्ता को प्रभावित करती है, जिससे जनता को नुकसान होता है।
  3. ओवर-बिलिंग और अंडर-बिलिंग: यह सरकारी संसाधनों के दुरुपयोग का प्रमुख उदाहरण है।
  4. अनुचित पदोन्नति: रिश्वत के जरिए कम योग्य लोगों को ऊंचे पद दिए जाते हैं।

मिलीभगत और शासन पर प्रभाव

मिलीभगत शासन और जनता के बीच की दूरी को बढ़ाती है। यह केवल वित्तीय नुकसान नहीं पहुंचाती, बल्कि प्रशासनिक प्रक्रिया की पारदर्शिता और विश्वसनीयता को भी कम करती है।

समाज और प्रशासन की भूमिका

समाज और प्रशासन दोनों की यह जिम्मेदारी है कि भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त किया जाए। इसके लिए जरूरी है कि:

  • कर्मचारी और मंत्री अपने पद को अपनी रोजी-रोटी का साधन समझें, न कि भ्रष्टाचार का माध्यम।
  • शपथ लेने को औपचारिकता न मानें, बल्कि इसे आचरण में उतारें।
  • सत्यनिष्ठा, ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ कार्य करें।

निष्कर्ष

भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए हर स्तर पर जवाबदेही तय करनी होगी। जब तक मिलीभगत और सांठगांठ जैसी समस्याएं रहेंगी, तब तक सुशासन की कल्पना अधूरी रहेगी। हमें अपने दायित्वों का पालन निष्ठा और ईमानदारी से करना होगा।

संकलनकर्ता
एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
(अंतरराष्ट्रीय लेखक, चिंतक, कवि, साहित्यकार, गोंदिया, महाराष्ट्र)

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